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परिकर्म द्वार-मृत्यु काल जानने के ग्यारह उपाय
श्री संवेगरंगशाला आयेगा, और बाजे की आवाज सुनाई दे तो निश्चित मृत्यु होगी। यदि पवन की गति और स्पर्श को नहीं जान सकता अथवा विपरीत जाने अथवा दो चन्द्र को देखे तो उसे मृत्यु की तैयारी वाला जानना । गुदा, तालू, जीभ आदि में निमित्त बिना अचानक दुष्ट प्रकट रूप में फुंसी आदि बहुत अधिक दिखाई दें तो शीघ्र मृत्यु आई है, ऐसा जानना। जिसने निमित्त बिना ही जीभ के अंतिम भाग में पहले कभी नहीं देखा ऐसा काला बिन्दु देखे तो वह भी एक महीने के अतिरिक्त नहीं जीयेगा । अथवा कर्मवश के कारण जिसका बड़ा अथवा सुंदर भी, स्वर बिना कारण अचानक बिगडा हुआ हो, किसी तरह निश्चय मूल स्वभाव से अति नीचा, मन्द पड़ गया हो अथवा महाउग्र बन गया हो अथवा जिसका स्वर अति करुणा वाला दीनता या कठोरतायुक्त दीखे, अथवा आवाज पकड़ी जाये, तो वह मनुष्य भी निःसंदेह अन्य शरीर को प्राप्त करता है अर्थात् वह मर जाता है। जो उत्तम पुरुष को कपाल विभाग में अति लम्बी और स्थूल एक, दो, तीन, चार या पाँच रेखाएँ होती हैं वह अनुक्रम से तीस, चालीस, साठ, अस्सी और सौ वर्ष तक सुंदर जीवन जीता है। जिस पुरुष का समग्र शरीर निमित्त बिना सहसा सर्वथा मूल प्रकृति को छोड़कर विकारमय दिखता है, कम्पन होता हो, पसीना आता हो, और थकावट लगे, उपचार करने से भी यदि गुणकारी नहीं हो तो वह भी अकाल में मृत्यु प्राप्त करता है ऐसा जानना । इस तरह मैंने यह निमित्त द्वार को अल्प मात्रा में कहा है।
अब सातवाँ ज्योतिष द्वार को कुछ अल्प में कहना चाहता हूँ ।। ३१७१ ।।
७. ज्योतिप द्वार : - इसमें शनैश्वर पुरुष के समान आकृति बनाकर, फिर निमित्त देखते समय जिस नक्षत्र में शनि हो, उसके मुख में वह नक्षत्र स्थापित करना ( लिखना) चाहिए। उसके बाद क्रमशः आनेवाले चार नक्षत्र दाहिने हाथ में स्थापन करना, तीन-तीन दोनों पैरों में, चार बाएँ हाथ में, पाँच हृदय स्थान पर, तीन मस्तक में, दोदो नेत्रों में, और एक गुह्य स्थान में स्थापित करना चाहिए। इस तरह नक्षत्रों की स्थापना द्वारा अति सुंदर शनि पुरुष चक्र को स्थापित करके, उसमें अपना जन्म नक्षत्र अथवा नाम नक्षत्र देखें। यदि निमित्त देखने के समय शनि पुरुष गुह्य स्थान में आया हो और उस पर दुष्ट ग्रह की दृष्टि पड़ती हो अथवा उसके साथ मिलाप हो तथा सौम्य ग्रह की दृष्टि या मिलाप न होता हो तो निरोगी होने पर भी वह मनुष्य मर जाता है। रोगी पुरुष की तो बात ही क्या करनी ? ( यही बात योगशास्त्र प्रकाश पाँच, श्लोक १९७ से २०० में आया है) अथवा प्रश्न लग्न अनुसार बुद्धिमान ज्योतिषी के कहने से स्पष्ट मरणकाल जानना चाहिए। जैसे कि प्रश्न करने के समय जो लग्न चल रहा हो, वहाँ उसी समय यदि क्रूर ग्रह चौथे, सातवें या दसवें में रहे और चन्द्रमा छवें या आठवें राशि में हो तो, रोगी निश्चय मरता है। अथवा लग्न का स्वामी ग्रह अस्त हुआ हो तो भी रोगी अथवा निरोगी हो, तो मर जाता यही बात योगशास्त्र प्रकाश, पाँच श्लोक २०१ में आई है। यदि प्रश्न करते समय लग्नाधिपति मेषादि राशि में गुरु, मंगल और शुक्रादि हो अथवा चालू लग्न का अधिपति अस्त हो गया हो तो निरोगी मनुष्य की भी मृत्यु होती है। तथा प्रश्न करते समय लग्न में चंद्रमा स्थिर हो, बारहवें में शनि हो, नौवें में मंगल हो, आठवें में सूर्य हो और यदि बृहस्पति बलवान न हो तो उसकी मृत्यु होती है। प्रश्न करते समय पर चंद्रमा दसवें में हो और सूर्य तीसरे या छों में हो तो उसी तरह समझना चाहिए, उसकी तीसरे दिन दुःखपूर्वक निःसंदेह मृत्यु होगी। और यदि पापग्रह लग्न के उदय स्थान से चौथे या बारहवें में हो तो उस मनुष्य की तीसरे दिन मृत्यु हो जायगी। प्रश्न करते समय चालू लग्न में अथवा पापग्रह पाँचवे स्थान में हो तो निःसंदेह निरोगी भी पाँच दिन में और योगशास्त्र अनुसार आठ या दस दिन में मृत्यु होती है। तथा अशुभग्रह यदि धनु राशि और मिथुन राशि में तथा सातवें स्थान में रहा हो तो व्याधि अथवा मृत्यु होती है, ऐसा सर्वज्ञ भगवंतों ने कहा है । ये सारा वर्णन योगशास्त्र प्रकाश पाँच श्लोक
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