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________________ परिकर्न द्वार-मृत्युकाल जानने के ग्यारह उपाय श्री संवेगरंगशाला सहसा यदि आकुल अथवा आकार, माप, वर्ण आदि से कम या अधिक दिखे, रस्सी समान आकार वाली या कण्ठ प्रतिष्ठित (गले तक) दिखे तो कह सकते हैं कि यह पुरुष शीघ्र मरण को चाहता है। और पानी किनारे खड़े होकर सूर्य को पीछे रखकर पानी में अपनी छाया को देखते यदि अलग मस्तक वाली दिखे, वह शीघ्र यममंदिर में जायगा। इसमें अधिक क्या कहें? यदि मस्तक बिना की अथवा बहुत मस्तकवाली या प्रकृति से असमान विलक्षण स्वरूप वाली अपनी छाया को देखे, वह शीघ्र यममंदिर में पहुँचेगा। जिसको छाया नहीं दिखे उसका जीवन दस दिन का, और दो छायाएँ दिखाई दें तो दो ही दिन का जीवन है। अथवा दूसरी तरह से निमित्त शास्त्र द्वारा कहते हैं कि-सूर्योदय से अन्तर्मुहूर्त तक दिन हो जाने के बाद, अत्यन्त पवित्र होकर सम्यग् उपयोग वाला सूर्य को पीछे रखकर अपने शरीर को निश्चल रखकर शुभाशुभ जानने के लिए स्थिर चित्त से छाया पुरुष को अर्थात् अपनी परछाई देखे। उसमें यदि अपनी उस छाया को सर्व अंगों से अक्षत संपूर्ण देखे तो अपना कुशल जानना। यदि पैर नहीं दिखे तो विदेश गमन होगा। दो जंघा न दिखे तो रोग। गुप्त भाग न दिखे तो निश्चय पत्नी का नाश। पेट न दिखे तो धन का नाश। और हृदय नहीं दिखे तो मरण होता है। यदि बाँयी, दाहिनी भुजा नहीं दिखे तो भाई और पुत्र का नाश होना जानना। मस्तक नहीं दिखे तो छह महीने में मृत्यु होगी। सर्व अंग नहीं दिखे तो शीध्र मृत्यु होगी, ऐसा जानना। इस तरह छाया पुरुष परछाई से आयुष्य काल को जानना चाहिए। यदि जल, दर्पण आदि में अपनी परछाई को नहीं देखे अथवा विकृत देखे तो निश्चय ही यमराज उसके नजदीक में घूम रहा है, ऐसा जानना। इस तरह छाया से भी सम्यग् उपयोगपूर्वक प्रयत्न करने वाला कला कुशल प्रायः मृत्यु काल को जान सकता है ।।३१२२।। .. नाड़ी द्वार :- अब यहाँ से नाड़ी द्वार कहते हैं। नाड़ी के ज्ञाताओं ने तीन प्रकार की नाड़ी कही है, प्रथम ईडा, दूसरी पिंगला और तीसरी सुषुमणा है। प्रथम बाँयी नासिका से बहती है, दूसरी दाहिनी नासिका से चलती है और तीसरी दोनों भाग से चलती है। इन तीनों नाड़ी के निश्चित्त ज्ञानयुक्त श्रेष्ठ योगी मुख को बन्द करके, आँखें स्थिर करके तथा सब अन्य प्रवृत्तियाँ छोड़कर केवल इसी अवस्था में स्थिर लक्ष्य वाले को स्पष्ट जानकारी हो सकती हैं। ईडा और पिंगला क्रमशः ढाई घड़ी तक चलती है और सुषुमणा एक क्षण मात्र चलती है। इस विषय में अन्य आचार्यों ने कहा है कि-छह दीर्घ स्वरों का उच्चारण करने में जितना समय लगता है, उतना स्वस्थ शरीर वाले मनुष्य का एक उच्छ्वास अथवा एक निश्वास जानना, उतने काल को प्राण कहते हैं, ऐसे तीन सौ साठ प्राणों की एक बाह्य घड़ी होती है। उस प्रमाण से ईडा नाड़ी सतत् पाँच घड़ी चलती है और पिंगला उससे छह प्राण कम चलती है, यह छह प्राण तक सुषुमणा चलती है। इस तरह तीनों नाड़ी की दस घड़ी होती है, नाड़ियों का यह प्रवाह प्रसिद्ध है। इसमें बाँयी को चन्द्रनाड़ी और दाहिनी को सूर्यनाड़ी भी कहते हैं। अब इसके अनुसार काल ज्ञान के उपाय कहते हैं। परमर्षि गुरु ने कहा है कि-यदि आयुष्य का विचार करते समय वायु का प्रवेश हो तो जीता रहेगा और वायु निकले तो मृत्यु होगी। जिसको चन्द्रनाड़ी के समय सूर्यनाड़ी अथवा सूर्यनाड़ी के समय चन्द्रनाड़ी अथवा दोनों भी अनियमित चलें, वह छह महीने तक जीता रहेगा। यदि उत्तरायण के दिन से पाँच दिन तक अखण्ड सूर्यनाड़ी चले तो जीवन तीन वर्ष का जानना। दस दिन तक चले तो दो वर्ष जीयेगा और पन्द्रह दिन तक अखण्ड चले तो एक वर्ष का आयुष्य है। और उत्तरायण के दिन से ही जिसकी बीस दिन तक लगातार सूर्यनाड़ी चले वह छह महीने ही जीता रहता है। यदि पच्चीस दिन सूर्यनाड़ी चले तो तीन महीने, छब्बीस दिन चले तो दो महीने, और सत्ताईस दिन चले तो निश्चय ही एक महीने जीता है, और उत्तरायण से अट्ठाईस दिन सूर्यनाड़ी अखण्ड चले तो पन्द्रह दिन जीता है। उन्तीस दिन सूर्यनाड़ी चले तो निश्चय दस दिन जानना, तीस दिन 135 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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