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________________ श्री संवेगरंगशाला परिकर्म द्वार-मृत्युकाल जानने के ग्यारह उपाय हिलाकर और फिर शरीर को मरोड़कर कंपकंपी करे तो रोगी अवश्य मरता है और इन्द्र भी उसकी रक्षा नहीं कर सकता है। खुले मुख वाला लार गिराता कुत्ता यदि दो आँखों को बंदकर और सिकोड़कर सो जाता है तो रोगी को यमपुरी में ले जाता है। बिमार के घर ऊपर यदि कौओं का समूह तीनों संध्या में मिलते देखे तो जानना कि अब जीव का विनाश होने वाला है। जिसके शयन घर में अथवा रसोईघर में कौआ चमड़ा, रस्सी, बाल या हड्डी डाले वह भी शीघ्र मरने वाला है ।।३०८७।। ३. उपश्रुति (शब्द श्रवण) द्वार :- अब यहाँ से दोष रहित उपश्रुति द्वार को कहते हैं। इसमें प्रशस्त दिन मनुष्यों का सोने का समय हो तब गुरु परंपरा के आये हुए और आचार्य सहित गच्छ के मन को आनंद उत्पन्न कराने वाले सूरि मन्त्र द्वारा आचार्य उपयोगपूर्वक दो कान को मंत्रित कर अथवा पंच नमस्कार द्वारा भी देव, गुरु को नमस्कार कर, सुगंधी अक्षत हाथ में लेकर, श्वेत वस्त्र का उत्तरासंग धारणकर आयुष्य के प्रमाण को जानने का निश्चयकर, एकाग्र चित्तवाले वे अपने दोनों कान के छिद्र बंदकर अपने स्थान से निकलकर, प्रशस्त उत्तर-ईशान दिशा सन्मुख क्रम से अथवा पैरों का चलना देखकर चण्डाल, वेश्या अथवा वेश्य या शिल्पकार आदि के मौहल्ले में, चौक या बाजार आदि प्रदेशों में सुगंध से मनोहर अक्षतों को फेंककर उसके बाद उपश्रुति, अर्थात् जो सुनने में आये उस शब्द को सम्यग् रूप से धारण करें। वे शब्द दो प्रकार के होते हैं। प्रथम अन्य पदार्थ का व्यपदेश वाला और दूसरा उसीका ही स्वरूप वाला होता है। उसमें प्रथम चिंतन द्वारा समझा जाय और दूसरा स्पष्ट अर्थ को बताने वाला होता है। जैसे कि-इस घर का स्तंभ इतने दिनों में या अमुक पखवाड़ों के बाद, अमुक महीने के बाद या अमुक वर्ष में निश्चय ही टूट जायगा अथवा नहीं टूटेगा, अथवा असुंदर होगा, या टकराने से यह शीघ्र टूट जायगा इत्यादि। अथवा तो यह दीपक दीर्घकाल रहेगा या टकराने से शीघ्र नाश होगा। इस तरह पदार्थ के विषय में शब्द सुनकर उस पुरुष को अपनी आयुष्य का अनुमान लगा लेना चाहिए। तथा पीठिका, दीपक की शिखा, लकड़ी का पात्री आदि स्त्रीलिंग पदार्थों के विषय में शब्द, स्त्री के आयुष्य का लाभ, हानि का अनुमान लगाना इत्यादि अन्य पदार्थ का व्यपदेश वाला उपश्रुति शब्द समझना। तथा यह पुरुष अथवा स्त्री इस स्थान से नहीं जायगी अथवा हम उसे जाने नहीं देंगे, यह व्यक्ति भी, जाना नहीं चाहता, अथवा तो दो, तीन, चार दिन में या उसके बाद इतने दिन, पखवाड़े, महीने या वर्ष के बाद अथवा उसके पहले जायगा या नहीं जायगा इत्यादि।।३१०० ।। अथवा तो यह पुरुष आज ही गमन करेगा, या इसे महाआदरपूर्वक बार-बार रोकने पर भी जल्दी जायगा, नहीं रुकेगा। आज ही रात्री अथवा कल या परसों दिन निश्चय यह जाने को उत्सुक है। हम भी जल्दी भेजने की इच्छा करते हैं, इससे शीघ्र जायगा इत्यादि। इस स्वरूप वाली उपश्रुति को दूसरे प्रकार का शब्द जानना। इसका अभिप्रायः यह है कि यदि जाने की बात सुनाई दे तो आयु का अंत निकट है, और रहने की बात सुने तो मृत्यु अभी नजदीक नहीं है। इस तरह दोनों प्रकार के शब्द को सुनकर उसके अनुरूप निर्यानक मुनिवर अथवा जिसने भेजा हो. उस रोगी के उद्देश के उचित कार्य करे अथवा बंद कान को खोलकर जो स्वयं सनी हई उपश्रुति के अनुसार चतुर पुरुष अपनी मृत्यु निकट या दूर है, उसे जान लेते हैं। यह उपश्रुति द्वार कहा ।।३१०६ ।। . अब छाया द्वार में छाया के अनेक भेद हैं, फिर भी यहाँ सामान्य से ही कहते हैं। ४. छाया द्वार :- आयुष्य के ज्ञान के लिए स्थिर मन, वचन, काया वाला पुरुष निश्चय हमेशा ही अपनी छाया को अच्छी तरह देखे, और अपनी परछाई के स्वरूप को अच्छी तरह जानकर शास्त्र कथित विधि द्वारा शुभअशुभ को जानें। इसमें सूर्य के प्रकाश के अंदर, शीशे में अथवा पानी आदि में शरीर की आकृति, प्रमाण, वर्ण आदि से जो परछाई पड़ती है उसे निश्चय ही प्रतिछाया जानना। वह प्रतिछाया जिसकी सहसा छेदन-भेदन हुई तथा 134 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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