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________________ परिकर्न द्वार-मृत्युकाल जानने के ग्यारह उपाय श्री संवेगरंगशाला के सामर्थ्य योग द्वार से कुछ स्थूल-मुख्य उपायों को मैं बतलाता हूँ। जैसे बादल से वृष्टि, दीपक से अंधकार में रही हुई वस्तुएँ, धुएँ से अग्नि, पुष्प से फल की उत्पत्ति, और बीज से अंकुर को जान सकते हैं, वैसे ही इन ग्यारह उपाय के समूह से प्रायः बुद्धिमान को मृत्युकाल की भी जानकारी हो सकती है। वह उपाय इस प्रकार से मृत्युकाल जानने के ग्यारह उपाय : (१) देवता के प्रभाव से, (२) शकुनशास्त्र से, (३) उपश्रुति अर्थात् शब्द श्रवण द्वारा, (४) छाया द्वारा, (५) नाड़ी ज्ञान द्वारा, (६) निमित्त से, (७) ज्योतिष द्वारा, (८) स्वप्न से, (९) अमंगल या मंगल से, (१०) यन्त्र प्रयोग से, और (११) विद्या द्वारा मृत्युकाल का ज्ञान हो सकता है। जैसे कि१. देवता द्वार :- इसमें प्रवर विद्या के बल द्वारा विधिपूर्वक अंगूठे के नख में, तलवार, दर्पण में, कुण्ड में आदि में उतारकर तथा विधि-उस प्रकार देवी को पूछने पर वह अर्थ को कहती है, परंतु आह्वान करनेवाला पुरुष अत्यंत पवित्र बना हुआ और निश्चल मनवाला, विधिपूर्वक उस देवता के आह्वान की विद्या का स्मरण करे। वह विद्या 'ॐ नरवीरे ठ ठ' इस तरह कही है, उसका सूर्य या चंद्र का ग्रहण हो तब दस हजार और आठ बार जाप करके विद्या को सिद्ध करनी चाहिए। फिर कार्यकाल प्राप्त होने पर एक हजार आठ बार जाप करने से उस विद्या की अधिष्ठायिका अंगूठे आदि में उतरती दिखती है। उसके पश्चात् कुमारिका द्वारा वांछित अर्थ (हकीकत) को निःसंशय जान सकते हैं। केवल यह विद्या निश्चल सम्यक्त्व वाले के वांछित को पूर्ण करती है अथवा किसी तपस्वी चारित्र शील गुणों से आकर्षित चित्तवाली यह देवी जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है कि उसे साक्षात् नहीं कहें! तो मरणकाल कहने में उसे कितना समय लगता है? २. शकुन द्वार :- निरोगी या बिमार मनुष्य के मृत्यु के ज्ञान के लिए स्वयं अथवा दूसरे द्वारा शकुन को देखें। इसमें प्रथम निरोगी के लिए कहते हैं-वह देव, गुरु को नमस्कार कर परम पवित्र बनकर प्रशस्त दिन में घर अथवा बाहर शकुन के भावफल का सम्यग् विचार करे। उसमें सर्प, चूहा, कृमिया, चीटी, कीड़े, गिलहरी, बिच्छू आदि की वृद्धि हो और घर में, बिल में, दीमक भूमि में छोटे फोड़े समान चीराड़, दरार आदि व्रण विशेष और खटमल, जूं आदि का बहुत ज्यादा उपद्रव हो, मकड़ी अथवा जाल बनाने वाले जीव, मकड़ी का जाल, भौरे, घर में अनाज के कीड़े, दीमक आदि बिना कारण बढ़ते जाये तथा लिपन किया हुआ आदि फट जाय अथवा रंग बदल जाये तो उद्वेग, कलह, युद्ध, धन का नाश, व्याधि, मृत्यु संकट आता है और स्थान भ्रष्टता या विदेश गमन होता है अथवा अल्पकाल में घर मनुष्य रहित शून्य बन जायगा। तथा किसी तरह कभी किसी स्थान पर सुख से सोये हए निद्रा अवस्था में कौएँ चोंच से मस्तक के बाल समह को खींचे तो मरण नजदीक जानना। अथवा उसके वाहन, शस्त्र, जूतें और छत्र को और ढके हुए शरीर को निःशंक रूप में कौआ मारे या काटे तो वह भी शीघ्र यम के मुख में जानेवाला समझना। यदि आँसू से पूर्ण नेत्रवाले सामान्य पशु अथवा गाय, बैल, पैर से पृथ्वी को बहुत खोदे तो उसके मालिक को केवल रोग ही नहीं आता. परंतु मृत्यु का कारण होता है। यह निरोगी अवस्थावाले के संबंध में कुछ अल्प शकुन स्वरूप कहा है। अब रोगी संबंधी कुछ कहते हैं, वह सुनो-यदि कुत्ता अपने दाहिने भाग की ओर मुख को मोड़कर अपनी पीठ के अंतिम विभाग को चाटे तो रोगी एक दिन में मर जायगा। यदि छाती को चाटे तो दो दिन और पूँछ को चाटे तो तीन दिन तक जीता रहता है, ऐसा श्वान शकुन के ज्ञाता ने कहा है। यदि कुत्ता निमित्त काल के समय में सर्व अंगों को सिकोड़कर सो रहा हो तो मानो कि बिमार उसी समय मर जाने वाला है। और कुत्ता दो कान - 133 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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