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________________ विषय पृष्ठ ७२ प्रवेशक मंगलाचरण संसार अटवी में धर्म की दुर्लभता धर्माधिकारी ग्रंथ रचना का हेतु और महिमा महासेन राजा की कथा विरप्रभु का उपदेश महासेन राजा के पुत्र को उपदेश महासेन राजा का पुत्र को हितोपदेश, विष की परीक्षा महासेन राजा का रानी कनकवती को हितोपदेश महासेन मुनि को प्रभु की हित शिक्षा श्री गौतमस्वामी का महासेन मुनि को उपदेश-ज्ञान की सामान्य आराधना दर्शन-चारित्र की सामान्य आराधना तप की सामान्य आराधना-संक्षिप्त और विशेष आराधना का स्वरूप मधुराजा का प्रबन्ध सुकोशल मुनि की कथा सुकोशल मुनि की कथा-विस्तृत आराधना का स्वरूप श्री मरुदेवा माता का दृष्टांत आराधना विराधना के विषय में क्षुल्लक मुनि की कथा परिकर्म द्वार अर्ह नामक अंतर द्वार अर्ह नामक अंतर द्वार-वंकचूल की कथा चिलाती पुत्र की कथा लिंग नामक दूसरा द्वार कुलबालक मुनि की कथा शिक्षा नामक तीसरा द्वार और उसके भेद इन्द्रदत्त के अज्ञपुत्र और सुरेन्द्रदत्त की कथा आसेवन शिक्षा का वर्णन ज्ञान-क्रिया उभय की परस्पर सापेक्ष उपादेयता मथुरा के मंगु आचार्य की कथा अंगारमर्दक आचार्य की कथा-ग्रहण आसेवन शिक्षा के भेद साधु और गृहस्थ का सामान्य आचार धर्म साधु का विशिष्ट आचार धर्म viji अनुक्रम पृष्ठ विषय विनय नामक चौथा द्वार विनय द्वार-विनय पर श्रेणिक राजा की कथा समाधि नामक पाँचवा द्वार और उसकी महिमा समाधि द्वार-नमि राजार्षि की कथा मन का छट्ठा अनुशास्ति द्वार मन की कुविकल्पता पर वसुदत्त की कथा अनियत विहार नामक सातवाँ द्वार दुर्गता नारी की कथा अनियत विहार से गृहस्थ-साधु के साधारण गुण सेलक सूरि की कथा राजा के अनियत विहार की विधि आठवाँ द्वार साधु को वसति दान देने से लाभ वसतिदान पर कुरुचन्द्र की कथा नौवाँ परिणाम द्वार-इस भव और परभव का हित चिंतन-श्रावक की भावना श्रावक की भावना पुत्र को अनुशास्ति योग्य पुत्र को अधिकार नहीं देने पर वज्र और केसरी की कथा कालक्षेप-पौषधशाला कैसी और कहाँ करानी? श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ मिथ्यात्व पर अन्ध की कथा साधारण द्रव्य खर्च के दस स्थान पुत्र प्रतिबोध नामक चौथा द्वार पुत्र प्रतिबोध सुस्थित घटना द्वार आलोचना द्वार काल परिज्ञान द्वार मृत्युकाल जानने के ग्यारह उपाय अणसण प्रतिपति द्वार त्याग नामक दसवाँ द्वार सहस्रमल्ल की कथा मरण विभक्ति नामक ग्यारहवाँ द्वार जयसुंदर और सोमदत्त की कथा उदायी राजा को मारने वाले की कथा ११२ w9. V MMMMMMMMS १३३ १४३ १४५ १४६ १४८ १४९ १५१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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