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________________ श्री संवेगरंगशाला १०. उद्दिष्टवर्जन प्रतिमा : दसवीं प्रतिमा के अंदर कोई क्षौर से मुण्डन करावे अथवा कोई चोटी रखे। ऐसा गृहस्थ दस महीने तक पूर्व की सर्व प्रतिमा का पालन करते जो उसके उद्देश - निमित्त से आहार, पानी आदि भोजन तैयार किया हो, उसका भी उपयोग न करे अर्थात् खाये नहीं। और स्वजन आदि निधान लेन-देन आदि के विषय में पूछे तो स्वयं जानता हो तो कहे, अन्यथा मौन रहे । ११. श्रमणभूत प्रतिमा : परिकर्म द्वार - साधारण द्रव्य खर्च के दस स्थान ग्यारहवीं प्रतिमा में यह प्रतिमाधारी क्षौरकर्म अथवा लोच से भी मुण्डन मस्तक वाला रजोहरणादि उपकरणों—वेश को धारणकर और साधु समान होकर दृढ़तापूर्वक विचरण करें। केवल स्वजनों का ऐसा स्नेह किसी तरह खत्म नहीं होने से किसी परिचित गाँव आदि में अपने स्वजनों को देखने मिलने वह जा सकता है। वहाँ भी साधु के समान ऐषणा समिति में उपयोग वाला वह किया, करवाया और अनुमोदन बिना का निर्दोष आहार को ही ग्रहण करें, उसमें भी गृहस्थ के वहाँ जाने के पहले तैयार किया हुआ भोजन, सूप आदि लेना उसे कल्पता है। परंतु बाद में तैयार किया हुआ हो तो वह आहार उसे नहीं कल्पता है। भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करते- 'अरे! प्रतिमाधारी श्रमणोपासक गृहस्थ को भिक्षा दो ।' ऐसा बोलना चाहिए। ऐसा विचरते तुझे अन्य कोई पूछे कि—'तूं कौन है?' तब 'मैं श्रावक की प्रतिमा को स्वीकार करनेवाला श्रावक हूँ।' ऐसा उत्तर देना चाहिए। इस तरह ग्यारहवीं प्रतिमा में उत्कृष्ट से ग्यारह महीने तक विचरण करें। जघन्य से तो शेष प्रतिमाओं का एक दो दिन आदि भी पालन कर सकता है। ये प्रतिमा पूर्ण हों तब धीरे से कोई आत्मा दीक्षा को भी स्वीकार करें, अथवा दूसरे पुत्र आदि के राग से गृहस्थ जीवन स्वीकार करें, और घर रहते हुए भी वह प्रायः पाप व्यापार से मुक्त रहें। अपने पास धन का सामर्थ्य हो तो जीर्ण जिनमंदिरों आदि की सार-संभाल लेनी चाहिए और अपना ऐसा सामर्थ्य न हो तो साधारण खर्च करके भी उसकी चिंता सार संभाल करें। केवल साधारण द्रव्य के खर्च ने के दस स्थान बतलाये हैं ।। २७७५ ।। वह इस प्रकार हैं :साधारण द्रव्य खर्च के दस स्थान : (१) जिनमंदिर, (२) जिनबिम्ब, (३) जिनबिम्बों की पूजा, (४) जिन वचनयुक्त जिनागम रूप प्रशस्त पुस्तकें, (५) मोक्षसाधक गुणों के साधने वाले साधु, (६) इसी प्रकार की साध्वी, (७) उत्तम धर्मरूपी गुणों को प्राप्त करने वाले सुश्रावक, (८) इसी प्रकार की सुश्राविकाएँ, (९) पौषधशाला उपाश्रय और (१०) इस प्रकार का सम्यग्दर्शन का शासन संघ आदि किसी प्रकार का धर्म कार्य हो तो उसमें। इन दस स्थानकों में साधारण द्रव्य को खर्च करना योग्य है। उसमें जिनमंदिर में साधारण द्रव्य को खर्च करने की विधि इस प्रकार है :१. जिनमंदिर : सूत्रानुसार अनियत विहार के क्रम से नगर, गाँव आदि में अनुक्रम से मास कल्प, चौमासी कल्प से या नवकल्पी विहार से विचरते, द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव आदि में राग रहित, साधु तथा व्यापार अथवा तीर्थयात्रा के लिए गाँव, आकार, नगर आदि में प्रयत्नपूर्वक परिभ्रमण करते आगम रहस्यों का जानकार तथा श्री जिनशासन के प्रति परम भक्ति वाला श्रावक भी जाते हुए रास्ते में गाँव आदि आये तो जिनमंदिर आदि धर्म स्थानक जानने के लिए गाँव के दरवाजे पर किसी को पूछ ले। और उसके कहने से वहाँ 'जिनमंदिर आदि हैं' ऐसा सम्यग् रूप से जानकारी हो तब हर्ष के समूह से रोमांचित शरीर वाला वह विधिपूर्वक उस गाँव आदि में जाये। यदि स्थिरता हो तो प्रथम ही वहाँ चैत्यवंदन आदि यथोक्त विधि करके जिनमंदिर में टूट-फूट आदि देखे, और उत्सुकता हो 120 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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