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________________ परिकर्म द्वार-श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ 'श्री संवेगरंगशाला तथा खड़े रहने में, या चलने में, सोने में, जागने में, लाभ में या हानि आदि में हर्ष-विषाद का अभाव हो वह अनाकुलता जानना। सोने या मिट्टी में, मित्र या शत्रु में, सुख और दुःख में, बीभत्स और दर्शनीय वस्तु में, प्रशंसा या निन्दा में और भी अन्य विविध मनोविकार (राग-द्वेष) के कारण आयें तो भी सदा जो सम चित्तता रखता है, उसे जगद्गुरु ने असंगता कही है। ये पाँच गुणों का समुदाय वह उत्कृष्ट सामायिक है, अथवा उन सर्व का कारणभूत एक उदासीनता गुण प्राप्त करना वही परम सामायिक है। अधिक क्या कहें? सावद्ययोगों का त्यागरूप और निरवद्य योगों के आसेवन रूप इत्वरिक अर्थात् परिमित काल तक की सामायिक वह गृहस्थ का उत्कृष्ट गुण स्थान है। इस तरह तीसरी प्रतिमा में गृहस्थ सम्यक् सामायिक का पालन करे तथा उसमें मनो दुष्प्रणिधान आदि अतिचारों का त्याग करें। ४. पौषध प्रतिमा : चौथी प्रतिमा में पूर्व की प्रतिमाओं का पालन करते हुए गृहस्थ श्रावक अष्टमी, चतुदर्शी आदि पर्व दिनों में चार प्रकार के पौषध को स्वीकार करें। इस प्रतिमा में 'अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित, शय्या-संस्तारक' आदि अतिचारों का त्याग करें और आहार आदि का सम्यग् अनुपालन अर्थात्-राग, स्वाद आदि अनुकूलता का त्यागकर पौषध करें। ५. प्रतिमा प्रतिमा : फिर पूर्व की प्रतिमाओं के अनुसार सर्व गुण वाला वह पाँचवीं प्रतिमा में, चौथी प्रतिमा में कहे अनुसार दिन में पौषध करें और संपूर्ण रात्री तक काउस्सग्ग ध्यान करें और प्रतिमा पौषध बिना दिनों में स्नान नहीं करें, दिन में ही भोजन करें, कच्छा नहीं लगाये, दिन में सम्पूर्ण ब्रह्मचारी और रात्री में भी प्रमाण करे, इस तरह प्रतिमा में स्थिर रहा गृहस्थ पाँच महिने तक तीन लोक में पूजनीय, कषायों को जीतनेवाले श्री जिनेश्वर देव का ध्यान करें अथवा अपने दोषों को रोकने के उपाय का ध्यान अथवा अन्य ध्यान (जिनेश्वर का नाम स्मरण आदि) करना। ६. अब्रह्मवर्जन प्रतिमा : छट्ठी प्रतिमा में रात्री के अंदर भी ब्रह्मचारी रहें, इसके अतिरिक्त विशेष रूप में मोह को जीतने वाला, शरीर शोभा रहित वह स्त्रियों के साथ एकान्त में न रहें, और पूर्व में कही हुई प्रतिमाओं में लक्ष्यबद्ध मन वाला, अप्रमादी वह छह महीने तक प्रकट रूप से स्त्रियों का अति परिचय और श्रृंगार की बातें आदि का भी त्याग करें।।२७६१।। ७. सचित्त त्याग प्रतिमा : पूर्व की प्रतिमा में कहे अनुसार गुण वाला अप्रमादी गृहस्थ सातवी प्रतिमा में सात महीने तक सचित्त आहार का त्याग करें और अचित्त का ही उपयोग करें। ८. आरम्भवर्जन प्रतिमा : पूर्व आराधना के साथ आठ महीने तक आजीविका के लिए पूर्व में आरम्भ किये हुए का भी सावध आरम्भ को स्वयं नहीं करे, नौकर द्वारा करवाये। ९. प्रेष्यवर्जन प्रतिमा : नौ महीने तक पुत्र या नौकर के ऊपर घर का भार छोड़कर लोक व्यवहार से भी मुक्त श्रावक परम संवेगी पूर्व की प्रतिमाओं में कहे हुए गुण वाला और प्राप्त हुए धन में संतोषी, नौकर आदि द्वारा भी पाप आरम्भ कराने का त्याग करें। Jain Education International 119 www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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