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है और एक संन्यासी उस रास्ते से गुजर रहा है। वह आदमी गाय को खींचता हुआ जंगल की तरफ ले जा रहा है। उस संन्यासी ने खड़े होकर उस गांव के लोगों से पूछा कि मैं एक सवाल पूछना चाहता हूं। यह गाय इस आदमी के साथ बंधी है या यह आदमी इस गाय के साथ बंधा है? गांव के लोगों ने कहा, बात सीधी और साफ है, कि गाय आदमी के साथ बंधी है। तो संन्यासी ने पूछा, अगर गाय भाग जाये तो आदमी उसके पीछे भागेगा या नहीं भागेगा? उन लोगों ने कहा, भागना ही पड़ेगा। तो उस संन्यासी ने कहा, गाय बहुत दृश्य रस्सी से बंधी है; और यह आदमी बहुत अदृश्य रस्सी से बंधा है। यह भी गाय को छोड़ नहीं सकता। गाय के गले में रस्सी है जो बहुत साफ है और दिखाई पड़ रही है। इस आदमी के गले में भी गाय की रस्सी है जो बहुत साफ है, पर दिखाई नहीं पड़ रही है। ___मालिक और गुलाम में इतना ही फर्क है कि एक की गुलामी दृश्य होती है और दूसरे की गुलामी अदृश्य होती है। इससे ज्यादा कोई भी फर्क नहीं है। हम जिसे गुलाम बनाते हैं वह हमें भी गुलाम बना लेता है। द पजेसर बिकम्स द पजेस्ड। अपरिग्रह खोज है इस बात की कि मैं अपना मालिक कैसे हो जाऊं।
सुना है मैंने, एक फकीर के मरने का वक्त करीब आ गया था। थोड़े-से पैसे उसके पास थे। उसने अपने शिष्यों से कहा कि इस गांव के सबसे गरीब आदमी को मैं ये पैसे दे देना चाहता हूं। तो गांव के सारे गरीब दूसरे दिन इकट्ठे हो गये। लेकिन उसने किसी को गरीब मानना स्वीकार न किया। एक-एक को उसने कहा कि नहीं तू नहीं है, नहीं तू नहीं है। अभी असली गरीब नहीं आया।
और फिर दोपहर सम्राट अपने रथ से निकला तो उसने अपने पैसों की झोली सम्राट के रथ पर फेंक दी। सम्राट को भी पता था कि सबसे गरीब आदमी को वे पैसे मिलने वाले हैं उस फकीर के। उस सम्राट ने हंस कर कहा कि पागल हो गये हो, सबसे अमीर आदमी पर पैसे फेंकते हो? घोषणा की थी सबसे गरीब आदमी के लिए।
तो उस फकीर ने कहा कि जिनके पास कम चीजें हैं उनकी गुलामी भी कम है, उनकी गरीबी भी कम है। तुम्हारे पास चीजें ज्यादा हैं, तुम्हारी गुलामी भी बड़ी है और तुम्हारी गरीबी भी बड़ी है। और मजा यह है सम्राट, कि जिनके पास बहुत कम है शायद उन्होंने और खोज की आशा छोड़ दी हो, किंतु जिनके पास बहुत ज्यादा है उनकी खोज की आशा का भी कोई हिसाब नहीं। तुमसे बड़े गरीब आदमी को मैं इस जमीन पर नहीं जानता हूं। ये पैसे मैं तुम्हें भेंट कर जाता हूं।
शायद उस फकीर का कहना ठीक ही था। बड़े गुलाम वे ही हैं जिन्हें दूसरों के सम्राट होने का भ्रम पैदा हो जाता है। और बड़े गरीब वे ही हैं जो बाहर की संपत्ति से भीतर की गरीबी मिटाना चाहते हैं। और बड़े परतंत्र वे ही हैं जो दूसरों को परतंत्र करके स्वयं की स्वतंत्रता के खयाल में भटकते हैं। कोई भी आदमी किसी को परतंत्र करके स्वतंत्र नहीं हो सकता। परिग्रह, इसी भ्रांति का नाम है।
मैं स्वतंत्र होना चाहता हूं तो मैं सोचता हूं कि किसी को परतंत्र कर लूं तो मैं स्वतंत्र हो
अपरिग्रह
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