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________________ सुंदरदास हरि बोलौ हरि बोल ज्योति से ज्योति जले धरमदास जस पनिहार धरे सिर गागर का सोवै दिन रैन पलटू हूंचे व सपना यह संसार कहे होत अधीर दादू सबै सयाने एक मत पिव पिव लागी प्यास मलूकदास कन थोरे कांकर घने दुवारे जो शांडिल्य अथातो भक्ति जिज्ञासा ( दो भागों में) बाउल संत प्रेम योग आनंद योग तंत्र संभोग से समाधि की ओर संभोग से समाधि की ओर युवक और यौन क्रांति - सूत्र तंत्र-सूत्र (पांच भागों में) Jain Education International योग पतंजलि: योगसूत्र (पांच भागों में) योग: नये आयाम झेन, सूफी और उपनिषद की कहानियां बिन बाती बिन तेल सहज समाधि भली यातले अंधे मनुष्य होने की कला सदगुरु समर्पण उस पथ के पथिक अंतर्यात्रा के पथ पर अन्य रहस्यदर्शी भक्ति-सूत्र (नारद) शिव-सूत्र (शिव) भजगोविन्दम् मूढमते (आदिशंकराचार्य). एक ओंकार सतनाम (नानक) जगत तरैया भोर की (दयाबाई) बिन घन परत फुहार (सहजोबाई ) नहीं सांझ नहीं भोर ( चरणदास) संतो, मगन भया मन मेरा ( रज्जब ) कहै वाजिद पुकार ( वाजिद) मरौ हे जोगी मरौ (गोरख) सहज-योग (सरहपा-तिलोपा) बिरहिनी मंदिर दियना बार (यारी) प्रेम-रंग-रस ओढ़ चदरिया (दूलन) दरिया कहै सब्द निरबाना (दरियादास बिहारवाले) हंसा तो मोती चुगैं (लाल) गुरु- परताप साध की संगति (भीखा) मन ही पूजा मन ही धूप ( रैदास) झरत दसहं दिस मोती (गुलाल) For Personal & Private Use Only 311 www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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