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को राजी होगी तो तभी राजी होगी जब पता चले कि कोई हर्जा नहीं । बूंद ही खोयेगी न, सागर हो जाएगी। लेकिन बुद्ध कहते हैं कि अगर सागर होने के मोह में कोई बूंद सागर में गिरेगी तो सागर न हो पाएगी। क्योंकि यह लोभ ही उसे बूंद बनाये रखेगा। यह लोभ ही, यह तृष्णा ही, उसका व्यक्तित्व ही चारों तरफ से बांधे रखेगा।
इसलिए मैंने शून्य शब्द का प्रयोग किया इस अर्थ में कि उस परम की कोई सीमा नहीं है। व्यक्ति बस खो जाता है। गुरजिएफ कहते हैं क्रिस्टलाइजेशन, मैं तो कहूंगा टोटल डीक्रिस्टलाइजेशन। मैं तो कहूंगा पूर्ण विसर्जन, पूर्ण समर्पण, टोटल सरेंडर, कुछ बचता नहीं, रेखा भी नहीं बचती । हंस उड़ गए और झील पर अब प्रतिबिंब भी नहीं बनता है। बूंद नहीं खो गई, दीये की ज्योति बुझ गई। और अब अनंत में भी खोजने पर भी कहीं उसका आकार नहीं मिलता है।
फिर भी आपकी पसंद की बात है। अगर मन डरता हो निषेध से तो विधायक शब्दों का प्रयोग करें। हिम्मत जैसे-जैसे बढ़ जाए वैसे-वैसे विधायक शब्द को छोड़ते जायें। और एक दिन तो हिम्मत जुटानी चाहिए नहीं में कूदने की । और जो नहीं में कूदने को राजी है, वही पूर्ण को उपलब्ध होता है । जो शून्य होने को राजी है, वह पूर्ण का अधिकारी हो जाता है ।
ये बातें इतने प्रेम और शांति से इन दिनों में सुनीं, अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें ।
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अप्रमाद (प्रश्नोत्तर)
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