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करने लगो। और तीसरी बाधा यह होगी कि गहराई का अनुभव मृत्यु का अनुभव है। जितनी गहराई में जाओगे उतने ही खो जाओगे। अंतिम गहराई पर गहराई रह जाएगी, तुम न रहोगे। इसलिए यदि अपने को बचाने का थोड़ा-सा भी मोह है तो गहराई में जाना असंभव है।
जगत हमारे चारों ओर फैला हुआ है। उस जगत में बहुत कुछ हम जोर से पकड़े हुए हैं। वह जोर से जो हमारी पकड़ है, वही स्वयं के भीतर की गहराइयों में उतरने में सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए इस जगत के संबंध में कछ सत्र समझ लेने जरूरी हैं।
बुद्ध कहा करते थे अपने भिक्षुओं से कि जीवन एक धोखा है। और जो इस धोखे को समझ लेता है, उसकी पकड़ जीवन पर छूट जाती है। ___इस पहले सूत्र को समझने की कोशिश करें-जीवन एक धोखा है। यहां जो जैसा दिखायी पड़ता है वह वैसा नहीं है। और यहां जैसी आशा बंधती है वैसा कभी फल नहीं होता है। यहां जो मानकर हम चलते हैं, उपलब्धि पर उसे कभी वैसा नहीं पाते। खोजते हैं सुख
और मिलता है दुख। खोजते हैं जीवन, आती है मौत। खोजते हैं यश, अपयश के अतिरिक्त अंत में कुछ भी हाथ नहीं बचता है। खोजते हैं धन, भीतर की निर्धनता बढ़ती चली जाती है। चाहते हैं सफलता और पूरी जिंदगी असफलता की लंबी कथा सिद्ध होती है। जीतने निकलते हैं, हारकर लौटते हैं। इस पूरी जिंदगी के धोखे को ठीक से देख लेना जरूरी है उस साधक के लिए, जो स्वयं के भीतर जाना चाहता है। यदि पहचान ले कि जीवन धोखा है, तो उस पर से उसकी पकड़ छूट जाती है। तट पर बंधी हुई जंजीर से हाथ मुक्त हो जाता है।
हम जानते हैं, फिर भी देखते नहीं हैं। शायद देखना यही चाहते हैं कि जीवन शायद धोखा नहीं है। हम अपने को धोखा देना चाहते हैं। जीवन तो निमित्त मात्र है। क्योंकि वही जीवन किसी के जागने का कारण भी बन जाता है और वही जीवन किसी के सोने का आधार हो जाता है।
ठीक ऐसे ही है जैसे राह पर चलते हुए, अंधेरे में कोई रस्सी सांप जैसी दिख जाये। रस्सी को सांप जैसा दिखने की कोई आकांक्षा भी नहीं है। रस्सी को कुछ पता भी नहीं है। लेकिन मुझे रस्सी सांप जैसी दिख सकती है। रस्सी सिर्फ निमित्त हो जाती है। मैं उसमें सांप को आरोपित कर लेता हूं। फिर भागता हूं, हांफता हूं, पसीने से लथपथ, भयभीत। और वहां कोई सांप नहीं है। लेकिन मेरे लिए है। रस्सी ने धोखा दिया, ऐसा कहना ठीक नहीं। रस्सी से मैंने धोखा खाया, ऐसा ही कहना ठीक है। पास जाऊं और देखू, रस्सी दिखाई पड़ जाये तो भय तत्काल तिरोहित हो जायेगा। पसीने की बूंदें सूख जायेंगी। हृदय की धड़कनें वापस अपनी गति ले लेंगी। खून अपने रक्तचाप पर लौट जायेगा। और मैं हंसूंगा और उसी रस्सी के पास बैठ जाऊंगा, जिस रस्सी से भागा था।
__परंतु जिंदगी में उलटी हालत है। यहां हमने रस्सी को सांप नहीं समझा है, सांप को रस्सी समझ लिया है। इसलिए जिसे हम जोर से पकड़े हुए हैं, कल अगर पता चल जाये कि वह सांप है तो छोड़ने में क्षण भर की भी देर नहीं लगती। इसलिए जीवन को उसकी सचाई में, उसके तथ्यों में देख लेना जरूरी है।
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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