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________________ है। मौत सामने खड़ी है। और एक मौका है कि जो भी मैं कर सकता हूं, कर डालूं । तो मुझे न आगे का खयाल रहा, न पीछे का खयाल रहा, न मुझे पत्नी का, राजा का खयाल रहा, न अपनी प्रेयसी का खयाल रहा। फिर तो धीरे- धीरें मुझे यह भी पता नहीं रहा कि मेरा हाथ कहां खत्म होता है और तलवार कहां शुरू होती है ! और जब लोग चिल्लाने लगे कि रुको, रुको! तो मुझे सुनाई नहीं पड़ता था कि कौन चिल्ला रहा है? किसको रोक रहे हैं ? यह आदमी टोटल हो गया। उस सम्राट ने कहा, आज मुझे पहली दफा पता चला कि सबसे बड़ी कुशलता टोटल एक्शन है। मैंने बड़ी कुशलता पाई लेकिन मैं टोटल नहीं हूं। क्योंकि तलवार चलाना मेरे लिए एक कला है, एक आर्ट है। मैं चलाता हूं, लेकिन मैं अलग हूं और पूरे वक्त मैं देख रहा हूं कि चोट तो नहीं लग जाएगी। कैसे बचूं, कैसे न बचूं । उसने कहा, बचने न बचने का तो सवाल ही न था मेरे लिए। इतना ही सवाल था कि आपको भी पता चल जाए कि तलवार चलायी गई। तुमने ऐसे ही नहीं मारा नहीं तो लोग तुम्हारी इज्जत को नाम धरेंगे, तो मैंने कहा कि अब मैं पूरा चला ही लूं दो चार क्षण के लिए मौका है। यह टोटल एक्शन से मेरा मतलब है। कृष्ण ने योग को कुशलता कहा है। यह तलवार चलानेवाला बिलकुल अकुशल आदमी, एकदम कुशल हो गया है। क्यों? क्योंकि योग को उपलब्ध हो गया है। योग शब्द का मतलब है, टोटल, जोड़। जब कोई आदमी भीतर पूरी तरह जुड़ जाता है तो योग उपलब्ध होता है, इंटीग्रेटेड, संयुक्त, संश्लिष्ट । जब भीतर कोई खंड नहीं होते। प्रेम करता है तो प्रेम करता है, क्रोध करता है तो क्रोध करता है, दुश्मन है तो दुश्मन है, मित्र है तो मित्र है। जब कोई आदमी किसी भी कृत्य में पूरा होता है तब उसकी शक्ति नहीं खोती । और यह बड़े मजे की बात है कि अगर कोई आदमी कृत्यों में पूरा हो जाये तो क्रोध धीरे-धीरे असंभव हो जाता है। क्योंकि तब क्रोध पूरा जला देता है, झुलसा देता है। तब घृणा मुश्किल हो जाती है, क्योंकि घृणा जहर हो जाती है । सब पूरे शरीर के रग-रोएं में जहर के फफोले छूट जाते हैं। तब शत्रु होना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि शत्रुता आत्मघात प्रतीत होती है, अपनी ही छाती में छुरा भोंकना प्रतीत होता है। हम तभी तक क्रोध में हो सकते हैं जब तक हम अधूरे काम कर रहे हैं। हम भी दुश्मन हो सकते हैं जब तक हमारे कृत्य पूरे नहीं हैं। जिस दिन हमारे कृत्य पूरे हैं, उस दिन हमारी जिंदगी में प्रेम का ही फूल खिल सकता है। जिस दिन हमारा कृत्य पूर्ण है, उस दिन प्रार्थना ही हमारे प्राणों की अभीप्सा बन जाती है। जिस दिन हमारे सारे जीवन का एक-एक कृत्य पूरा हो जाता है, उस दिन परमात्मा ही हमारे लिए एकमात्र सत्य रह जाता है । जब भीतर एक पैदा होता है तो बाहर भी एक दिखाई पड़ने लगता है। जब तक भीतर दो हैं तब तक बाहर दो हैं । दो भी कहना ठीक नहीं। हमारे भीतर अनेक हैं । मैंने सुना है, जीसस एक गांव से गुजरते थे। रात थी और मरघट पर एक आदमी छाती पीट रहा था, चिल्ला रहा था, पत्थरों से अपने शरीर को खरोंच कर लहूलुहान कर रहा था । ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया 248 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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