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दूसरी बात, संकल्प और संघर्ष । संकल्प को थोड़ा समझना उपयोगी है कि संकल्प से क्या अर्थ है, और कैसे यह ऊर्जा संकल्प से ऊपर जा सकती है। दो-चार उदाहरण दूं, उनसे खयाल में आ सकेगा।
कल ही एक मित्र मुझसे पूछ रहे थे कि मुसलमान रोजा रखते हैं, जैन, हिंदू उपवास करते हैं, क्रिश्चियन उपवास करते हैं, इसका क्या संबंध है? भूखे रहने से क्या होगा ?
भूखे रहने से कभी कुछ भी नहीं होता । भूखे रहने से कभी कुछ भी नहीं हो सकता है। लेकिन ये सारे लोग पागल नहीं हैं। उन्हें नहीं कह रहा हूं जो कर रहे हैं, क्योंकि उनमें से अधिक लोग पागल ही होंगे। क्योंकि उन्हें कुछ भी पता नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं। लेकिन जिन लोगों से इन सूत्रों की यात्रा शुरू हुई, वे लोग पागल नहीं हैं।
आदमी की जिंदगी में भोजन की आकांक्षा सबसे गहरी है। क्योंकि सर्वाइवल के लिए, बचने के लिए, सबसे जरूरी चीज है। आदमी प्रेम छोड़ सकता है भोजन के लिए। मां बच्चे काट सकती है भोजन के लिए। बंगाल के अकाल में माताओं ने अपने बच्चे बेच दिए। पति पत्नी को काट सकता है, बेच सकता है, पत्नी पति को फेंक सकती है। मरने के क्षण में जहां अंतिम स्थिति बचाने की हो जाये वहां चित्त पूरे जोर से कहेगा कि अपने को बचाओ। क्योंकि शेष सब फिर से हो सकता है। लेकिन बचना फिर दुबारा नहीं हो सकता है। पति फिर मिल सकता है, बेटा फिर पैदा हो सकता है लेकिन स्वयं के पाने का दुबारा क्या उपाय है ? इसलिए भोजन सर्वाइवल की गहरी से गहरी आकांक्षा है।
अब एक आदमी को महीने भर के लिए भूखा रख दिया गया है। जब वह भूखा है तब चौबीस घंटे उसे याद आती है : भोजन करूं, भोजन करूं, भोजन करूं। चौबीस घंटे उसके शरीर का रो-रोआं कहेगा कि भोजन करो। जागते में, सपने में, शरीर कहेगा : भोजन करो। एक जगह खाली हो गई है। एक बायोलॉजिकल गैप भीतर पैदा हो गया है। शरीर कहेगा भोजन करो और वह इसी वक्त परमात्मा की प्रार्थना में लगता है। शरीर चिल्ला रहा
भोजन की प्यास, और वह चिल्ला रहा है परमात्मा की प्यास । थोड़े ही समय में, दिन दोदिन, चार दिन बीतेंगे और शरीर की जो भोजन की प्यास है, कनवर्ट हो जाएगी और परमात्मा की प्यास बन जाएगी। वह जो शरीर की भोजन की मांग है, अगर वह नहीं झुका और संकल्प किए ही चला गया कि नहीं, भोजन नहीं, परमात्मा ही; नहीं, भोजन नहीं परमात्मा । अगर शरीर के सामने नहीं झुका और कहता चला गया: भोजन नहीं, परमात्मा ! तो चार-छह दिन के भीतर शरीर भोजन की जगह परमात्मा को पुकारने लगेगा।
यह रूपांतरण हुआ। यह ट्रांसफार्मेशन हुआ । एनर्जी, जो भोजन को मांगती थी, वह परमात्मा को मांगने लगी। इस तरह भोजन की तरफ जाते हुए संकल्प को परमात्मा की तरफ मोड़ दिया गया है। यह बड़ा रूपांतरण है।
संकल्प शक्तियों के रूपांतरण का नाम है। जब चित्त मांगता है यौन, जब चित्त मांगता है दूसरे को अपोजिट को, स्त्री पुरुष को, पुरुष स्त्री को, जब चित्त मांगता है कि दूसरे की तरफ बहो, तब बहाव का रूपांतरण करना पड़ेगा। जब चित्त जिस ढंग से दूसरे को, मांगता
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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