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________________ बंधे हुए थे। इसलिए संन्यासी कभी भी मुक्त नहीं हो पाया। कोई संन्यासी हिंदू है, कोई मुसलमान है, कोई जैन है, कोई बौद्ध है, कोई ईसाई है। कम से कम संन्यासी को तो सिर्फ धार्मिक होना चाहिए। इसका यह अर्थ नहीं कि वह मस्जिद न जाये, वह मंदिर न जाये। यह उसकी मौज है। वह कुरान पढ़े या गीता पढ़े, यह उसकी पसंद है। वह जीसस को प्रेम करे कि बुद्ध को प्रेम करे, यह उसकी अपनी बात है। लेकिन संन्यासी होते ही उसे किसी संप्रदाय का नहीं रह जाना चाहिए। क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति संन्यासी हुआ अब कोई धर्म उसका अपना नहीं, क्योंकि सभी धर्म अब उसके अपने हो गये। __इसलिए संन्यास में एक तीसरी बात भी मैं जोड़ना चाहता हूं, वह है-गैर-सांप्रदायिकता। संप्रदाय के पार संन्यासी को होना चाहिए। और अगर इस पृथ्वी पर हम ऐसे संन्यासी पैदा कर सकें जो ईसाई नहीं हैं, हिंदू नहीं हैं, जैन नहीं हैं, बौद्ध नहीं हैं, तो हम इस जगत को धार्मिक बनाने के रास्ते पर आसानी से ले जा सकेंगे। और अगर संन्यासी हिंदू, बौद्ध और जैन न रह जायें तो आदमी-आदमी को लड़ाने के बहुत-से आधार गिर जायेंगे, और आदमी-आदमी को जोड़ने के बहुत से सेतु फैल जायेंगे। ___ इसलिए संन्यासी को मैं सिर्फ धार्मिक कहता हूं, रिलिजस माइंड। उसका किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं, क्योंकि सारे धर्म उसके अपने हैं। यह दूसरी बात है कि उसे गीता से प्रेम है और वह गीता पढ़ता है। यह दूसरी बात है कि उसे कृष्ण से प्रेम है और वह कृष्ण के गीत गाता है। यह दूसरी बात है कि उसे जीसस से मोहब्बत है और वह जीसस के चर्च में सो जाता है। ये बिलकुल दूसरी बातें हैं। ये उसकी व्यक्तिगत बातें हैं। लेकिन अब वह ईसाई नहीं है, जैन नहीं है, हिंदू नहीं है, बौद्ध नहीं है। और कल अगर उसे किसी गांव का मंदिर बुलाता है तो मंदिर में रुकता है, मस्जिद बुलाती है तो मस्जिद में रुक जाता है, चर्च निमंत्रण देता है तो चर्च का मेहमान हो जाता है। अगर हम पृथ्वी पर लाख दो लाख संन्यासी भी धर्मों के पार निर्मित कर सकें, तो हम दुनिया में आदमी-आदमी के बीच के वैमनस्य को गिराने के लिए सबसे बड़ा कदम उठा सकते हैं। इस तरह के संन्यास को मैं तीन हिस्सों में बांट देना पसंद करता हं. जो आपको समझने में आसान हो जाएगा। वे लोग जो अपनी जिंदगी को जैसा चला रहे हैं वैसा ही चलाकर संन्यासी होना चाहते हैं, वे वैसे ही संन्यासी हो जायें। सिर्फ संन्यास की घोषणा अपने और जगत के प्रति कर दें। संन्यास का निर्णय अपने और जगत के प्रति ले लें। लेकिन जहां हैं उसमें रत्ती भर फर्क न करें, जो हैं उसमें फर्क करना शुरू कर दें। लेकिन बहुत लोग हैं, जैसे ढेर वृद्ध मुझे मिलते हैं जो घरों में तकलीफ में पड़ गए हैं, क्योंकि घरों में अब उनका कोई संबंध नहीं है। आनेवाली पीढ़ियों को उनमें कोई रस नहीं है। सारे सेतु उनके बीच टूट गए हैं। वृद्धों को तो निश्चित ही आश्रमों में पहुंच जाना चाहिए। इस मुल्क में एक व्यवस्था थी। उस व्यवस्था के टूट जाने के बाद शायद जिसको हम जेनरेशन गैप कहते हैं, वह पैदा हुआ। सारी दुनिया में पैदा हुआ। जिसे हम पीढ़ियों का फासला कहते हैं। 214 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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