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________________ पर पहुंच गये हो, तो ही चल सकते हो। तो जो मंजिल पर पहुंच ही गया है, वह चलेगा ही क्यों? और जो नहीं पहुंचा है, वह मंजिल कहां से दिखाये कि मैं मंजिल पर पहुंच गया हूं। पहला कदम तो अपात्रता में ही उठेगा। लेकिन पहला कदम भी कोई उठाता है, यह भी बड़ी पात्रता है; और पहले कदम की भी कोई हिम्मत जुटाता है, तो यह भी बड़ा संकल्प है। संन्यास मेरी दृष्टि में बहुत और तरह की बात है। संन्यास मेरी दृष्टि में सिर्फ एक बात का स्मरण है कि मैं अब स्वयं को परमात्मा के लिए समर्पित करता हूं; अब मैं स्वयं को सत्य की खोज के लिए समर्पित करता हूं। अब मैं साहस करता हूं कि धार्मिक चित्त की तरह जीने की चेष्टा करूंगा। इसलिए ये जो गैरिक वस्त्र आपको दिखाई पड़ रहे हैं, ये उनके स्मरण के लिए हैं, रिमेंबरिंग के लिए हैं, कि उनको स्मरण बना रहे हैं कि अब वे वही नहीं हैं, जो कल तक थे। दूसरे भी उन्हें स्मरण दिलाते रहें कि अब वे वही नहीं हैं, जो कल तक थे। ___ वस्त्रों की बदलाहट से कोई संन्यासी नहीं होता, लेकिन संन्यासी अपने वस्त्र बदल सकता है। गले में माला डाल लेने से कोई संन्यासी नहीं होता, लेकिन संन्यासी गले में माला डाल सकता है; और माला का उपयोग कर सकता है। गले में डली माला उसके जीवन में आए रूपांतरण की निरंतर सूचना है। ___ आप बाजार जाते हैं और कोई चीज लानी होती है, तो कपड़े में गांठ बांध लेते हैं। जब भी गांठ याद पड़ती है, खयाल आ जाता है कि कोई चीज लाने को आये थे। गांठ चीज नहीं है; और जिसने गांठ बांध ली, वह चीज ले ही आयेगा, यह भी पक्का नहीं है। क्योंकि जो चीज भूल सकता है, वह गांठ भी भूल सकता है। लेकिन फिर भी जो चीज भूल सकता है, वह गांठ बांध लेता है; और सौ में नब्बे मौकों पर गांठ की वजह से चीज ले आता है। ये कपड़े, यह माला, यह सारा बाहरी परिवर्तन है, यह संन्यास नहीं है। यह सिर्फ गांठ बांधना है कि मैं एक संन्यास की यात्रा पर निकला हूं; कि उसका स्मरण, कि उसका सतत स्मरण मेरी चेतना में बना रहे। वह स्मरण सहयोगी है। इस संबंध में कल और आपसे बात कर सकूँगा, आज के लिए बस। 204 ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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