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________________ किसी को मित्र बनाने के लिए शत्रु बनाना अनिवार्य शर्त नहीं है। शर्त ही नहीं है। असल में शत्रु बनाने के लिए पहले मित्र बनाना जरूरी है। मित्र बनाये बिना शत्रु नहीं बनाया जा सकता। हां, मित्र बनाया जा सकता है बिना शत्रु बनाये। उसके लिए कोई शर्त नहीं है शत्रुता की। मित्रता सदा शत्रुता के पहले चलती है। ___ अपनों के साथ जो हिंसा है, वह अहिंसा का गहरे से गहरा चेहरा है। इसलिए जिस व्यक्ति को हिंसा के प्रति जागना हो, उसे पहले अपनों के प्रति जो हिंसा है, उसके प्रति जागना होगा। लेकिन मैंने कहा कि किसी-किसी क्षण में दूसरा अपना मालूम पड़ता है। बहुत निकट हो गये होते हैं हम। यह निकट होना, दूर होना, बहुत तरल है। पूरे वक्त बदलता रहता है। इसलिए हम चौबीस घंटे प्रेम में नहीं होते किसी के साथ। प्रेम के सिर्फ क्षण होते हैं। प्रेम के घंटे नहीं होते। प्रेम के दिन नहीं होते। प्रेम के वर्ष नहीं होते। मोमेंट्स ओनली। लेकिन जब हम क्षणों से स्थायित्व का धोखा देते हैं तो हिंसा शुरू हो जाती है। अगर मैं किसी को प्रेम करता हूं तो यह क्षण की बात है। अगले क्षण भी करूंगा, जरूरी नहीं। कर सकूँगा, जरूरी नहीं। लेकिन अगर मैंने वायदा किया कि अगले क्षण भी प्रेम जारी रखूगा, तो अगले क्षण जब हम दूर हट गये होंगे और हिंसा बीच में आ गई होगी तब, तब हिंसा प्रेम की शक्ल लेगी। इसलिए दुनिया में जितनी अपना बनानेवाली संस्थाएं हैं, सब हिंसक हैं। परिवार से ज्यादा हिंसा और किसी संस्था ने नहीं की है, लेकिन उसकी हिंसा बड़ी सूक्ष्म है। इसलिए अगर संन्यासी को परिवार छोड़ देना पड़ा, तो उसका कारण था। उसका कारण था-सूक्ष्मतम हिंसा के बाहर हो जाना। और कोई कारण नहीं था, और कोई भी कारण नहीं था। सिर्फ एक ही कारण था कि हिंसा का एक सूक्ष्मतम जाल है जो अपना कहनेवाले कर रहे हैं। उनसे लड़ना भी मुश्किल है, क्योंकि वे हमारे हित में ही कर रहे हैं। परिवार का ही फैला हुआ बड़ा रूप समाज है, इसलिए समाज ने जितनी हिंसा की है, उसका हिसाब लगाना कठिन है! सच तो यह है कि समाज ने करीब-करीब व्यक्ति को मार डाला है! इसलिए ध्यान रहे जब आप समाज के सदस्य की हैसियत से किसी के साथ व्यवहार करते हैं तब आप हिंसक होते हैं। अगर आप जैन की तरह किसी व्यक्ति से व्यवहार करते हैं तो आप हिंसक हैं। हिंदू की तरह व्यवहार करते हैं तो आप हिंसक हैं। मुसलमान की तरह व्यवहार करते हैं तो आप हिंसक हैं। क्योंकि अब आप व्यक्ति की तरह व्यवहार नहीं कर रहे, अब आप समाज की तरह व्यवहार कर रहे हैं। और अभी व्यक्ति ही अहिंसक नहीं हो पाया तो समाज के अहिंसक होने की संभावना तो बहत दर है। समाज तो अहिंसक हो ही नहीं सकता, इसलिए दुनिया में जो बड़ी हिंसाएं हैं, वह व्यक्तियों ने नहीं की हैं, वह समाजों ने की हैं। ____ अगर एक मुसलमान को हम कहें कि इस मंदिर में आग लगा दो, तो अकेला मुसलमान, व्यक्ति की हैसियत से, पच्चीस बार सोचेगा। क्योंकि हिंसा बहुत साफ दिखाई पड़ रही है। लेकिन दस हजार मुसलमानों की भीड़ में उसको खड़ा कर दें तब वह एक बार भी नहीं सोचेगा, क्योंकि दस हजार की भीड़ एक समाज है। अब हिंसा साफ न रह गई, ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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