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रूप के हिंसक हैं। और अहिंसक होने की पहली शर्त है, अपनी हिंसा को उसकी ठीक-ठीक जगह पर पहचान लेना। क्योंकि जो व्यक्ति हिंसा को ठीक से पहचान ले, वह हिंसक नहीं रह सकता है। हिंसक रहने की तरकीब, टेक्नीक एक ही है कि हम अपनी हिंसा को अहिंसा समझे जायें। इसलिए असत्य, सत्य के वस्त्र पहन लेता है। और हिंसा, अहिंसा के वस्त्र पहन लेती है। वह धोखा पैदा होता है।
सुनी है मैंने एक कथा, सीरियन कथा है।
सौंदर्य और कुरूप की देवियों को जब परमात्मा ने बनाया और वे पृथ्वी पर उतरीं, तो धूल-धवांस से भर गए होंगे उनके वस्त्र, तो एक झील के किनारे वस्त्र रख कर वे स्नान करने झील में गईं। स्वभावतः सौंदर्य की देवी को पता भी न था कि उसके वस्त्र बदले जा सकते हैं। असल में सौंदर्य को अपने वस्त्रों का पता ही नहीं होता है। सौंदर्य को अपनी देह का भी पता नहीं होता है। सिर्फ कुरूपता को देह का बोध होता है, सिर्फ कुरूपता को वस्त्रों की चिंता होती है। क्योंकि कुरूपता वस्त्रों और देह की व्यवस्था से अपने को छिपाने का उपाय करती है। सौंदर्य की देवी झील में दूर स्नान करते निकल गई, और तभी कुरूपता की देवी को मौका मिला; वह बाहर आई, उसने सौंदर्य की देवी के कपड़े पहने और चलती बनी। जब सौंदर्य की देवी बाहर आई तो बहुत हैरान हुई। उसके वस्त्र तो नहीं थे। वह नग्न खड़ी थी। गांव के लोग जागने शुरू हो गये और राह चलने लगी थी। और कुरूपता की देवी उसके वस्त्र ले कर भाग गई थी तो मजबूरी में उसे कुरूपता के वस्त्र पहन लेने पड़े। और कथा कहती है कि तब से वह कुरूपता की देवी का पीछा कर रही है और खोज रही है; लेकिन अब तक मिलना नहीं हो पाया। कुरूपता अब भी सौंदर्य के वस्त्र पहने हुए है, और सौंदर्य की देवी अभी भी मजबरी में करूपता के वस्त्रों को ओढे हए है। ___असल में असत्य को जब भी खड़ा होना हो तो उसे सत्य का चेहरा उधार लेना पड़ता है! असत्य को भी खड़ा होना हो तो उसे सत्य का ढंग अंगीकार करना पड़ता है। हिंसा को भी खड़े होने के लिए अहिंसा बनना पड़ता है। इसलिए अहिंसा की दिशा में जो पहली बात जरूरी है, वह यह है कि हिंसा के चेहरे पहचान लेने जरूरी हैं। खास कर उसके अहिंसक चेहरे, नॉन-वायलेंट फेसेज़ पहचान लेना बहुत जरूरी है। हिंसा, सीधा धोखा किसी को भी नहीं दे सकती। दुनिया में कोई भी पाप, सीधा धोखा देने में असमर्थ है। पाप को भी पुण्य की आड़ में ही धोखा देना पड़ता है। यह पुण्य के गुण-गौरव की कथा है। इससे पता चलता है कि पाप भी अगर जीतता है तो पुण्य का चेहरा लगा कर ही जीतता है। जीतता सदा पुण्य ही है! चाहे पाप के ऊपर चेहरा बन कर जीतता हो और चाहे खुद की अंतरात्मा बन कर जीतता हो। पाप कभी जीतता नहीं। पाप अपने में हारा हुआ है। हिंसा जीत नहीं सकती। लेकिन दुनिया से हिंसा मिटती नहीं, क्योंकि हमने हिंसा के बहुत से अहिंसक चेहरे खोज निकाले हैं। तो पहले हम हिंसा के चेहरों को समझने की कोशिश करें।
__ हिंसा का सबसे पहला रूप, सबसे पहली डायमेंशन, उसका जो पहला आयाम है, वह बहुत गहरा है, वहीं से पकड़ें। सबसे पहली हिंसा, दूसरे को दूसरा मानने से शुरू होती है :
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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