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________________ 118 जो बुद्ध की आंखों में एक समस्वरता है, वह समस्वरता किन्हीं कड़ियों के बीच बंधे हुए गीत की नहीं, किन्हीं वाद्यों पर पैदा किये गये स्वरों की नहीं - वह आत्मा के भीतर से सब द्वंद्व के विसर्जन से उत्पन्न हुई है। अहिंसा एक अंतर-संगीत है । और जब भीतर प्राण संगीत से भर जाते हैं, तो जीवन स्वास्थ्य से भर जाता है; और जब भीतर प्राण विसंगीत से भर जाते हैं, तो जीवन रुग्णता से, डिसीज से भर जाता है। यह अंग्रेजी का शब्द 'डिसीज़' बहुत महत्वपूर्ण है । वह डिस ईज़ से बना है। जब भीतर विश्राम खो जाता है, ईज़ खो जाती है; जब भीतर सब संतुलन डगमगा जाते हैं, और सब लयें टूट जाती हैं, और काव्य की सब कड़ियां बिखर जाती हैं, और सितार के सब तार टूट जाते हैं, तब भीतर जो स्थिति होती है, वह डिसीज़ है । और जब भीतर कोई चित्त रुग्ण हो जाता है, तो शरीर बहुत दिन तक स्वस्थ नहीं रह सकता है। शरीर छाया की तरह प्राणों अनुगमन करता है। इसलिए मैंने कहा कि हिंसा एक रोग है, एक डिसीज है; और अहिंसा रोगमुक्ति है, और अहिंसा स्वास्थ्य है। जैसे मैंने कहा, अंग्रेजी का शब्द डिसीज़ महत्वपूर्ण है, वैसा हिंदी का शब्द 'स्वास्थ्य' महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ हेल्थ नहीं होता, जैसे डिसीज़ का मतलब सिर्फ बीमारी नहीं होती। स्वास्थ्य का मतलब होता है : स्वयं में जो स्थित हो गया है। स्वयं में जो ठहर गया है। स्वयं में जो खड़ा हो गया है। स्वयं में जो लीन हो गया है और डूब गया है। स्वयं हो गया है जो । जो अपनी स्वयंता को उपलब्ध हो गया है। जहां अब कोई परता नहीं, कोई दूसरा नहीं कि जिससे संघर्ष भी हो सके; कोई भिन्न स्वर नहीं, सब स्वर स्वयं बन गए - ऐसी स्थिति का नाम 'स्वास्थ्य' है। अहिंसा इस अर्थ में स्वास्थ्य है, हिंसा रोग है । और पूछा है कि बायोकेमिकली, जीव-रसायन की दृष्टि से मैं क्या कहना चाहूंगा। जीव-रसायन की दृष्टि से भी, बायोकेमिकल दृष्टि से भी हिंसा रुग्णता है। जैसे ही चित्त हिंसा से भरता है, शरीर विषाक्त द्रव्यों से भर जाता है। जैसे ही चित्त हिंसा से भरता है, वैसे ही सारे शरीर में विषयुक्त द्रव्य दौड़ने शुरू हो जाते हैं। शरीर में ग्रंथियां हैं जो पायज़न को इकट्ठा करती हैं, शरीर में ग्रंथियां हैं जो जहरों को अर्जित करके इकट्ठा रखती हैं, समय पर जरूरत पड़े, उसकी सुरक्ष में। जब आप क्रोध से भरते हैं, तो आपके पास वही खून नहीं रह जाता, जो क्रोध के पहले था। आपका खून पायजन्ड हो जाता है। आपके खून में वे ग्रंथियां उन जहरों को छोड़ देती हैं, जो आपको लड़ने और मरने का पागलपन दे सकें । इसलिए क्रोध की हालत में आप इतना बड़ा पत्थर उठा सकते हैं, जो आपने अक्रोध की हालत में कभी नहीं उठाया था- नहीं उठा सकते थे। क्रोध की स्थिति में आप अपने से ताकतवर आदमी को उठाकर फेंक सकते हैं, जो कि आप शांत स्थिति में कभी सोच भी नहीं सकते थे। आपके शरीर में केमिकल ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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