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________________ किया था, वह पीछा नहीं छोड़ रहा है, वह उसके साथ ही जुड़ा हुआ है। यह उदारहण के लिए मैंने कहा। हिंसा भी मनुष्य का पशु जीवन में ग्रहण किया गया संस्कार है। पशु जी नहीं सकता बिना हिंसा के और हम हिंसा के साथ न जी सकेंगे। पशु नहीं जी सकता बिना हिंसा के और आदमी पैदा ही नहीं होता हिंसा के साथ। इसलिए आदमी दस हजार साल से सिवाय लड़ने के और कुछ भी नहीं कर रहा है; जी नहीं रहा है, सिर्फ लड़ रहा है। अगर हम ऐसा कहें कि आदमी सिर्फ लड़ने के लिए ही जी रहा है, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। __पिछले तीन हजार वर्षों में पंद्रह हजार युद्ध लड़े गए। और ये युद्ध तो बड़े पैमाने की बात है, चौबीस घंटे भी हम लड़ रहे हैं। चौबीस घंटों में ऐसे क्षण खोजने कठिन हैं, जब हम किसी तरह की लड़ाई में संलग्न न हों। कभी हम धन के लिए लड़ रहे हैं। कभी हम यश के लिए लड़ रहे हैं। कभी हम पद के लिए लड़ रहे हैं। कभी हम शत्रुओं से लड़ रहे हैं। कभी मित्रों से लड़ रहे हैं। और हमारी लड़ाई राजनीति बन जाती है। और कभी हम धन के लिए लड़ रहे हैं और हमारी लोलुपता शोषण बन जाती है। और कभी हम अकारण भी लड़ रहे हैं, क्योंकि लड़ने की वह जो आदत है, वह मांग करती है कि लड़ो। ____ एक आदमी शिकार करने जा रहा है, वह अकारण लड़ रहा है। खेल में लड़ रहा है। अगर कुछ न हो तो हम ऐसे खेल विकसित करेंगे, जिनसे लड़ने की वृत्ति तृप्त हो। हमारे सब खेल लड़ने के मिनिएचर हैं, वह लड़ने के छोटे-छोटे रूप हैं। खेल हमारी लड़ाइयां हैं-व्यर्थ की लड़ाइयां। जहां कोई कारण नहीं है। और जब लड़ने के लिए कोई कारण न मिले, तो भी हम अकारण लड़ना चाहेंगे। अगर युद्ध में न लड़ सकें, तो शतरंज की गोटियां बिठाकर युद्ध करना चाहेंगे। शतरंज में भी तलवारें खिच जाती हैं, तो बहुत आश्चर्य नहीं है। शतरंज भी, बहुत गहरे में दूसरे को हराने की आकांक्षा है, और दूसरों से लड़ने का रस है। हमारे सारे खेल युद्ध के रूप हैं। या तो ऐसा कहें कि हमारे सारे खेल युद्ध के रूप हैं या ऐसा भी कह सकते हैं कि युद्ध भी हमारा सबसे भयंकर खेल है। लेकिन आदमी लड़ रहा है। जिन्हें हम संबंध कहते हैं, रिलेशनशिप कहते हैं, वे भी हमारी लड़ाइयां हैं। पति और पत्नी को अगर कोई मंगल ग्रह का यात्री आकर चौबीस घंटे देखता रहे, तो वह यह न मान सकेगा कि ये दोनों आदमी साथ रहने के लिए राजी हुए हैं। वह इतना ही समझ पायेगा कि ये दोनों आदमी इस बात के लिए राजी हुए हैं कि हम चौबीस घंटे लड़ते रहेंगे। शायद जिसे हम परिवार कहते हैं, वह उन लोगों की संस्था है, जिन्होंने यह तय किया हुआ है कि लड़ेंगे भी और हटेंगे भी नहीं! दूर भी न होंगे! जीवन चारों तरफ हिंसा है। यह हिंसा रोग है मनुष्य के लिए। यह हिंसा अब अनिवार्य नहीं है, पशु के लिए रही होगी। और साथ में स्मरण रखें, जैसे ही विकास का नया चरण उठाया जाता है, नई जिम्मेदारियों और नये दायित्वों में भी चरणं उठ जाता है। एवरी स्टेप ऑफ इवोल्यूशन इज़ अहिंसा (प्रश्नोत्तर) 115 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004032
Book TitlePanch Mahavrat Pravachan aur Prashnottari - Jyo ki Tyo Dhari Dinhi Chadariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year2012
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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