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जागने की कोशिश करना। लंबी है यह यात्रा, असंभव नहीं। कठिन है यह यात्रा पर असंभव नहीं। और जो करता है वह कर ही पाता है। और नीचे-नीचे उतरते जाना, ऊपर की फिक्र छोड़ देना। ऊपर के फल अपने से आने लगेंगे। जितने आप नीचे उतरेंगे, उतने ऊपर फूल खिलने लगेंगे। उनकी सुगंध, उनका प्रकाश, उनका आनंद, झरने लगेगा। जैसे-जैसे नीचे जायेंगे वैसे-वैसे ऊपर जाने लगेंगे। और जिस दिन कोई व्यक्ति अपनी गहराई से गहराई को छू लेता है, द अल्टीमेट डेप्थ, जिस दिन परम गहराई को छू लेता है, उसी दिन परम ऊंचाई को छू लेता है। और जिस दिन दोनों छू लेता है, उस दिन गहराई और ऊंचाई एक हो जाती है। दो नहीं रह जाती। उस दिन सब एक हो जाता है।
सात मंजिल का यह मकान जिस दिन पूरा जान लिया जाता है, उस दिन एक हो जाता है। उस दिन फिर इसमें सात मंजिलें भी नहीं रह जातीं। सब बीच के परदे गिर जाते हैं। दीवालें हट जाती हैं। और एक भवन रह जाता है। उस एक का अनुभव ही परमात्मा का अनुभव है! उस एक का अनुभव ही मोक्ष का अनुभव है! उस एक का अनुभव ही अद्वैत का अनुभव है! उस एक का अनुभव ही समाधि का अनुभव है!
इन पांच दिनों में यह थोड़ी-सी बातें मैंने आपसे कहीं। इसलिए नहीं कि मुझे कहने में कुछ मजा आता है, इसलिए नहीं कि आपको सुनने में थोड़ा मनोरंजन हो, बल्कि इसलिए कि शायद कहीं चोट लग जाये! वीणा का कोई तार आपके भीतर कंप जाये! और कोई यात्रा शुरू हो जाये। ____ अंत में परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि आप अपने को बिना जाने समाप्त न हो जायें। आपकी जानने की, आपकी खोजने की, स्वयं से पूरी तरह परिचित होने की, यात्रा शुरू हो। लेकिन अकेली परमात्मा से की गयी प्रार्थना का कोई अर्थ नहीं हो सकता। आप से भी मैं प्रार्थना करता हूं कि परमात्मा को थोड़ा सहयोग दें कि आपकी यात्रा पूरी हो सके।
मेरी बातों को इतनी शांति और प्रेम से सुना उससे बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे प्रभु को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
अप्रमाद
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