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________________ चरित्र ‘पउम चरियं' ही हैं । श्री रविषेण, श्री स्वयंभू, श्री शीलांकाचार्यजी, श्री हेमचंद्राचार्यजी आदि की रामायण इसके बाद की हैं । __यह ग्रंथ पहले हिन्दी अनुवाद सहित छप चुका है। परंतु इसमें अमुक स्थानोमें अशुद्धपाठ दृष्टिगोचर होते हैं, कहीं तो इतनी अशुद्धि जान पडती हैं की अर्थ का अनर्थ हो गया है । जैसे: अह अट्ठकम्मरहियस्स२३०/- में केवलज्ञान पाने के वक्त आठ कर्मों का क्षय होने की बात द्योतित है जो बराबर नहीं हैं। ___ इस प्रकारकी अनेक अशुद्धियाँ पर Dr. K. R. Chandra ने अपनी पुस्तक में अंगुली निर्देश किया है। प्राप्य हस्तलिखित प्रतोंके द्वारा अशुद्धि परिमार्जन करना जरूरी है, परंतु यह बहुत बडा कार्य होने से वे कर नहीं पाए । अतः कोई भी विद्वान इस कार्य को करे तो जिनशासन के श्रुत साहित्य की बड़ी सेवा होगी। विशेष में आज दिन तक इसकी संस्कृत छाया भी दृष्टि गोचर नहीं हुई । मुनिश्री पार्श्वरत्न विजयजी म.सा.ने महेनत कर संस्कृत छाया की है। अल्पावधिमें किया हुआ प्रयास स्तुत्य है । साथ ही अनेक कार्यों की व्यस्तता होने पर भी, चिन्तनमनीषी पंन्यास प्रवर श्री मुक्तिवल्लभ विजयजी म.के. शिष्य मुनिराज श्री वितराग वल्लभ विजयजी म.सा.ने उदारतापूर्वक इस ग्रंथ के प्रथम भाग के ४९ उद्देशका संशोधन किया है इसलिए वे भी साधुवादाह है। विशेष में संघ एकताके शिल्पी प.पू. आ.भ. श्री ॐकारसूरिजी म.सा.के सुमुदाय के पू. मुनिश्री. जिनचंद्रविजयजी म.सा. के शिष्यरत्न साहित्यकार्यमें मग्न प्रशांतमूर्ति आ.भ. श्री मुनिचंद्रसूरीश्वरजी म.सा. ने उदारतापूर्वक संपादन-प्रकाशन आदि में अपना अमूल्य समय प्रदान किया उसकी तो बहुत ही अनुमोदना होती है। ___ रात्रि भोजन के भयंकर नुकसान के दिग्दर्शन से, जिनपूजा के अनुपम लाभ के वर्णन आदि से यह ग्रंथ अत्यंत रोचक है, अतः इसका पठन-पाठन करें यही सभी से अभ्यर्थना । __ इसके पठन-पाठन से महापुरुषों के आदर्शों का ज्ञान प्राप्त हो सकेगा । उन आदर्शों को आचरण में लेकर सभी अक्षयसुख के भोक्ता बने यही शुभाभिलाषा । भैरुबाग जैन तीर्थ जोधपुर(राज.) २०६८, पोष वद-४, बुधवार १४-१२-२०११ प.पू. दीक्षादानेश्वरी आ.भ.श्री गुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य प.प्रा. आ.भ.श्री पुण्यरत्नसूरीश्वरजी म.सा. आ.यशोरत्नसूरि (१) देखिए: अध्यात्मोपनिषद् एवं ज्ञानसार ! (२) आ. नियुक्ति गा. 763-777 । (३) देखिए : की Dr. K.R. Chandra : A Critical stuty of Pauma chariyam Pg. 1 For Personal & Private Use Only Jain Education Intemational www.jainelibrary.org
SR No.004024
Book TitlePaumchariyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshvaratnavijay
PublisherOmkarsuri Aradhana Bhavan
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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