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________________ शास्त्र ही साधु का नेत्र हैं । आगमचक्खू साहू इंदियचक्खूणि सव्वभूदानि । देवाय ओहिचक्खू सिद्धा पुण सव्वदो चक्खू ॥ प्रवचनसार ३४ ॥ साधुभगवंत आगमचक्षु होते हैं । सर्वभूत इन्द्रियचक्षु, देव अवधिचक्षु और सिद्ध परमात्मा सर्वतः चक्षु होते हैं । श्रमण भगवान महावीरने घोर साधना के बल पर केवल ज्ञान की प्राप्ति की । तत्पश्चात् श्री गौतम गणधर आदि ने प्रभुकृपासे द्वादशांगी की रचना की । उसी श्रुतज्ञान की परंपरा प्रभु के शासनमें चली । समस्त जैन साहित्य का वर्गीकरण विषयकी दृष्टि से चार भागो में किया है । यह अनुयोग - विभाग श्री आर्यरक्षितसूरिजीने किया था । उन्होंने भविष्यमें होनेवाले अल्पबुद्धि शिष्यों का विचार करके आगमिक साहित्य चार अनुयोग में विभाजित किया । जैसे ग्यारह अंगो को चरणकरणानुयोगमें, ऋषिभाषितों का धर्मकथानुयोगमें, सूर्यप्रज्ञप्ति चंद्रप्रज्ञप्ति आदि को गणितानुयोगमें रखा और बारहवें अंग दृष्टिवादको द्रव्यानुयोग में रखा। दिगंबर परंपरा में भी प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग के नाम से ४ विभाग किये हुए हैं । पुराणचरितादिको प्रथमानुयोगमें गिने है । करणशब्द के दो अर्थ हैं- परिणाम और गणितसूत्र । अतः खगोल- भूगोल का वर्णन करनेवाले तथा जीव और कर्म के संबंध आदि के निरूपक कर्मसिद्धांत विषयक ग्रन्थ करणानुयोग में लिए गए हैं । आचारसंबंधी साहित्य चरणानुयोगमें आता हैं । और द्रव्य-गुण-पर्याय आदि वस्तुस्वरूपके प्रतिपादक ग्रंथ द्रव्यानुयोग में आते हैं । नंदीसूत्र में उल्लेख है कि दृष्टिवाद के एक विभाग स्वरूप गण्डिकानुयोग में चक्री, बलदेव, वासुदेव आदि के चरित्र आते हैं । परंतु कालक्रम से श्रुतका विच्छेद होनेसे अब यह साहित्य उपलब्ध नहीं हैं । केवल वर्तमानमें उपलब्ध आगमोंमें भी ये चरित्र नहीं मिलते हैं । दशवे अंग प्रश्नव्याकरणमें 'सती सीता'का फक्त नामोल्लेख है । ठाणांग सूत्र एवं समवायांग सूत्रमें बलदेव, वासुदेव के नाम उनके मातापिता आदि के नाम हैं- परंतु राम-लक्ष्मण (जो बलदेव - वासुदेव हुए) का कोई इतिहास नहीं मिलता हैं 1 फिरभी हमारा सौभाग्य हैं कि पूर्वधर नाइलवंशीय श्री विमलसूरिजी का 'पउम चरियं' आज भी उपलब्ध हैं । प्रशस्ति से पता चलता है की यह रचना वीरनिर्वाण ५३० की हैं। जिनशासनमें सबसे प्राचीनतम राम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004024
Book TitlePaumchariyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshvaratnavijay
PublisherOmkarsuri Aradhana Bhavan
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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