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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
उपयोगः स्पर्शादिषु ॥ १९॥ सूत्रार्थ:-स्पर्श, रसनादिमें उपयोग होता है। भाष्यम्-स्पर्शादिषु मतिज्ञानोपयोग इत्यर्थः । उक्तमेतदुपयोगो लक्षणम् । उपयोगः प्रणिधानमायोगस्तद्भावः परिणाम इत्यर्थः ॥ एषां च सत्यां निर्वृत्तावुपकरणोपयोगौ भवतः । सत्यां च लब्धौ निर्वृत्त्युपकरणोपयोगा भवन्ति । निर्वृत्त्यादीनामेकतराभावे विषयालोचनं न भवति ।
विशेषव्याख्या स्पर्शादि इन्द्रियोंके विषयमें मतिज्ञानका उपयोग होता है। और यह वार्ता तो पूर्व प्रसङ्गमें कह ही आये हैं, कि उपयोग जीवका लक्षण होता है । उपयोग, प्रणिधान, आयोग, सद्भाव तथा परिणाम ये सब प्रायः एकार्थवाचक हैं। निर्वृत्तिके उपयोग होने पर ही इनके उपकरण तथा उपयोग होते हैं। और लब्धिके होनेपर निवृत्ति, उपकरण, तथा उपयोग होते हैं । और निर्वृत्ति, उपकरण, तथा उपयोग इनमेंसे किसी एकके न होने पर विषयका ज्ञान नहीं होता ॥ १९॥
अत्राह । उक्तं भवता पञ्चेन्द्रियाणीति । तत्कानि तानीन्द्रियाणीत्युच्यते
अब यहांपर कहते हैं कि आपने पांच इन्द्रियां तो कहीं, परन्तु वे पांच इन्द्रियां कौन२ हैं ? इसलिये अग्रिमसूत्र कहते हैं
स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि ॥२०॥ सूत्रार्थ:-स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षुः तथा श्रोत्र ये पांच इन्द्रियां हैं। भाष्यम्-स्पर्शनं रसनं घ्राणं चक्षुः श्रोत्रमित्येतानि पञ्चेन्द्रियाणि ॥ विशेषव्याख्या-जिसके द्वारा स्पर्श होता है, अर्थात् जिससे शीतोष्ण तथा मृदु कठोर आदि स्पर्शका ज्ञान होता है, वह स्पर्शन इन्द्रिय है। ऐसे ही जिसके द्वारा मिष्ट तिक्त आदिका ज्ञान होता है, वह रंसन इन्द्रिय है । जिसके द्वारा सुगन्ध दुर्गन्धादिका ज्ञान होता है, वह घाण (नासिका) इन्द्रिय है । जिसके द्वारा श्वेतपीतादि रूपका ज्ञान होता है, वह चक्षुरिन्द्रिय (नेत्र) है । तथा जिसके द्वारा शब्दका ज्ञान होता है, वह श्रोत्र इन्द्रिय है ॥ २० ॥
स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तेषामर्थाः ॥ २१॥ सूत्रार्थः-स्पर्श, रस आदि पदार्थ स्पर्शन आदि इन्द्रियोंके अर्थ (विषय) हैं । भाष्यम्-एतेषामिन्द्रियाणामेते स्पर्शादयोऽर्था भवन्ति यथासङ्ख्यम् ॥ विशेषव्याख्या-स्पर्शन इन्द्रियका अर्थ स्पर्श है, क्योंकि स्पर्शन इन्द्रियके सिवाय और किसी इन्द्रियके द्वारा स्पर्श पदार्थका ज्ञान नहीं होता । रसना इन्द्रियका अर्थ रस, १ किसी २ के मतमें यह मूलसूत्र नहीं है, और कोई २ कहते हैं कि ये मूलसूत्र ही है भाष्य नहीं ।
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