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________________ ३४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् 1 पर घट ग्राह्य है ? इस प्रकार विवाद प्राप्त हुआ। इसका उत्तर कहते हैं:- सबै एक ही है, क्योंकि सत्स्वरूपसे सबमें अभेद है, अर्थात् सद्रूपसे सब अभिन्न है । जैसे जो सत् है धर्म सत् है, अधर्म सत् है, आकाश सत् है, इस प्रकार सत्स्वरूपसे किसी में भेद नहीं है । तथा सब द्विविध है, क्योंकि सब कुछ चेतन और अचेतनमय है, चेतन और अचेतनसे भिन्न कुछ नहीं है, इसलिये चेतन और अचेतन भेदसे सब द्विविध है । तथा सब त्रित्व संख्यायुक्त है; क्योंकि द्रव्य, गुण और पर्यायरूप ही समस्त लोक है । द्रव्य गुण और पर्याय इनसे भिन्न कुछ नहीं है; इसलिये सब जगत त्रिविध है । तथा सब चार संख्या युक्त है, क्योंकि चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन तथा केवल दर्शन इन चार प्रकार के दर्शनविषयों में सब गतार्थ है । तथा सब कुछ पंचसंख्यामय है, क्योंकि जीवास्तिकायादि पंचास्तिकायमें सब गतार्थ है । तथा सब कुछ षट्संख्यामय हैं; क्योंकि षड्द्द्रव्यमें सब अन्तर्भूत है । जैसे एकत्व, द्वित्व आदि विवाद के स्थान नहीं हैं, किन्तु कथन तथा ज्ञानकी भिन्न २ परिपाटी है, ऐसे ही नयवाद भी हैं। किं च दूसरी यह भी वार्त्ता है, कि जैसे मतिज्ञान आदि पांच ज्ञानोंसे धर्मास्तिकाय आदि पंचास्तिकायों में कोई एक अस्तिकायरूप पदार्थ पर्यायविशुद्धि तथा उत्कर्ष से पृथक् २ उपलब्ध होता है; और वह पृथक् २ उपलब्धि विप्रतिपत्ति नहीं है, ऐसे ही नयवाद भी हैं । अर्थात् पृथक् २ नयसे भिन्न प्रकारसे पदार्थों के स्वरूप जाने जाते हैं, इसमें कुछ विवाद नहीं है । अथवा जैसे निज २ विषयके नियमसे प्रत्यक्ष अनुमान उपमान तथा आप्तवचनसे एक ही पदार्थ प्रमाण साक्षात् विषयीभूत किया जाता है, किन्तु वह अनेक प्रमाणोंसे एक पढ़ार्थकी प्रमिति विवाद नहीं है । ऐसे ही नयवाद भी हैं । अब इस विषय में संक्षिप्त रुचिवा - लेको बोध कराने के अनुग्रहसे आर्याद्वारा कहते हैं, : नैगमशब्दार्थानामेकानेकार्थनयगमापेक्षः । देशसमग्रग्राही व्यवहारी नैगमो ज्ञेयः ॥ १ ॥ यत्सङ्गृहीतवचनं सामान्ये देशतोऽथ च विशेषे । तत्सङ्ग्रहनयनियतं ज्ञानं विद्यान्नयविधिज्ञः ॥ २ ॥ समुदायव्यक्ताकृतिसत्तासञ्ज्ञादिनिश्चयापेक्षम् । १ द्रव्यसमूह | Jain Education International लोकोपचारनियतं व्यवहारं विस्तृतं विद्यात् ॥ ३ ॥ साम्प्रतविषयग्राहकमृजुसूत्रनयं समासतो विद्यात् । विद्याद्यथार्थशब्द विशेषितपदं तु शब्दनयम् ॥ ४ ॥ इति ॥ निगमजन पदमें होनेवाले शब्द और उनके अर्थोंको नैगम, और उन नैगम शब्दार्थोंमेंसे एक विशेष तथा अनेक सामान्यविषयों वा अर्थोंके एकदेशसे वा समग्ररूपसे ग्रहण करानेमें जो समर्थ है, उसको व्यवहारी नैगम कहते हैं ॥ १ ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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