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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
प्रकृतिके उदयमें प्रज्ञा तथा अज्ञान, दर्शनमोहनीय तथा अन्तरायके उदयमें अदर्शन तथा अलाभ चार ये, और चारित्रमोहनीयके उदयमें नाश्य आदि सात = ४+७ = ११ । अर्थात् प्रज्ञा, अज्ञान, अदर्शन, अलाभ, नान्य, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचन, और सत्कारपुरस्कार इन ग्यारहसे जो शेष ग्यारह रह गये वे वेदनीय कर्मप्रकृतिके उदयमें जो कि जिनमें कहे गये हैं, होते हैं ॥ १६ ॥
एकादयो भाज्या युगपदेकोनविंशतेः ॥ १७ ॥
भाष्यम् – एषां द्वाविंशतेः परीषहाणामेकादयो भजनीया युगपदेकस्मिन् जीवे आ एकोनविंशतेः । अत्र शीतोष्णपरीषहौ युगपन्न भवतः । अत्यन्तविरोधित्वात् । तथा चर्याशय्यानि - षद्यापरीषाणामेकस्य संभवे द्वयोरभावः ।
सूत्रार्थ - विशेषव्याख्या – इन बाईस २२ परीषहों के मध्य में एकही कालमें एक पुरुषमें एक आदिका विभाग करना उचित है । अर्थात् एकही समय एक पुरुष में एकसे लेकर उन्नीस १९ तक हो सकते हैं । तात्पर्य यह कि किसी में एक परीषह होता है किसी में दो, किसी में तीन, इस क्रमसे उन्नीसपर्य्यन्त होसकते हैं । परन्तु यहांपर यह भी जानना योग्य है कि एक कालमें एकही पुरुषमें शीतपरीषह तथा उष्ण परीषह ये दोनों नहीं होते, क्योंकि शीत तथा उष्णका परस्पर अत्यन्त विरोध है । ऐसे ही चर्य्या, शय्या, तथा निषद्या, इन तीन परीषहोंमेंसे जब एककी सत्ताका सम्भव होता है तब शेष दोनोंका अभावही रहता है; क्योंकि चर्य्या (गति), शय्या ( शयन) और निषद्या ( स्थिति ), इनमें भी विरोध होनेसे जब गमन होगा, तब शयन तथा स्थिति वा निषद्या ( खड़ा होना) नहीं होस - कता । इसीप्रकार जब शय्या होगी तब निषद्या तथा चर्य्या न होगी, तथा जब चर्या होगी तब निषद्या तथा शय्या न होगी ॥ १७॥
सामायिकच्छेदोपस्थाप्यपरिहारविशुद्धिसूक्ष्म संपराययथाख्यातानि
चारित्रम् ॥ १८ ॥
सामायिकसंयमः छेदोपस्थाप्यसंयमः परिहारविशुद्धिसंयमः सूक्ष्मसंपरायसंयमः यथाख्यातसंयम इति पञ्चविधं चारित्रम् तत्पुलाकादिषु विस्तरेण वक्ष्यामः ।
सूत्रार्थ — सामायिकसंयम, छेदोपस्थाप्यसंयम, परिहारविशुद्धिसंयम, सूक्ष्मसंपरायसंयम, और यथाख्यातसंयम, यह पांच प्रकारका चारित्र है । पुलाकादिप्रकरण में इन चारित्रोंको विस्तारपूर्वक कहेंगे ॥ १८ ॥
अनशनाव मौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरस परित्यागविविक्त शय्यासनकायक्लेशा बाह्यं तपः ॥ १९ ॥
सूत्रार्थ – अनशनादि छे प्रकारका बाह्य तप है ।
भाष्यम् – अनशनम् अवमौदर्यवृत्तिपरिसङ्ख्यानं रसपरित्यागः विविक्तशय्यासनता काय
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