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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
२०९ सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-वेदनीय कर्मप्रकृतिके आश्रयीभूत एकादश (ग्यारह ११) परीषह जिन (भगवान्) में हो सकते हैं उनके नाम ये हैं । क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, वध, रोग, तृणस्पर्श, तथा मलपरीषह, इन ग्यारह परीषहोंका संभव जिन भगवानमें भी है ॥ ११ ॥
बादरसंपराये सर्वे ॥१२॥ भाष्यम्-बादरसंपरायसंयते सर्वे द्वाविंशतिरपि परीषहाः संभवन्ति ।
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-बादर-संपराय-संयत गुणस्थानवी जीवमें सब अर्थात् क्षुत्पिपासा आदि २२ बाईसो परीषह होसकते हैं ॥ १२ ॥
ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने ॥ १३ ॥ भाष्यम्-ज्ञानावरणोदये प्रज्ञाज्ञानपरीषहौ भवतः ।
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-ज्ञानावरणीय कर्मप्रकृतिके उदयमें प्रज्ञापरीषह तथा अज्ञानपरीषह होते हैं ॥ १३ ॥
दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ ॥१४॥ भाष्यम्-दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ यथासङ्ख्यं दर्शनमोहोदयेऽदर्शनपरीषहः लाभान्तरायोदयेऽलाभपरीषहः । . सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-दर्शनमोह तथा अन्तराय नाम कर्मप्रकृतियोंके उदयमें यथासंख्य (क्रम ) से दर्शनपरीषह तथा अलाभपरीषह होते हैं । अर्थात् दर्शनमोह प्रकृतिके उदयमें तो अदर्शनपरीषह (दर्शनाभाव ) होता है और लाभाऽन्तरायके उदयमें अलाभपरीषह होता है ॥ १४ ॥
चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्काराः१५ भाष्यम्-चारित्रमोहोदये एते नाग्न्यादयः सप्त परीषहा भवन्ति ।
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-चारित्रमोहनीय कर्मप्रकृतिके उदयमें नाम्य आदि सप्त (सात) परीषह होते हैं । अर्थात् चारित्रमोहनीय प्रकृति जब उदयको प्राप्त होती है तब नाग्न्यपरीषह, अरतिपरीषह, स्त्रीपरीषह, निषद्यापरीषह, आक्रोशपरीषह, याचनापरीषह, तथा सत्कारपुरस्कारपरीषह होते हैं ॥ १५॥
वेदनीये शेषाः ॥१६॥ भाष्यम्-वेदनीयोदये शेषा एकादश परीषहा भवन्ति ये जिने संभवन्तीत्युक्तम् । कुतः शेषाः । एभ्यः प्रज्ञाज्ञानादर्शनालाभनाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्कारेभ्य इति ।
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-वेदनीय कर्मप्रकृतिके उदयमें शेष (बाकी) परीषह जो कि जिन भगवान्में होते हैं वे होते हैं इनमें शेषत्व कहांसे है इसका अभिप्राय यह है कि ज्ञानावरण ..
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