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________________ १८० रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम् सदृशी माया, मेषविषाण (भेड़के सींग ) सदृशी, तथा निर्लेखनसदृशी । इसके भी उपसंहार तथा दृष्टान्त क्रोधके दृष्टान्तोंसे व्याख्यात ( वर्णित ) समझलेने चाहिये । लोभो रागो गार्घ्यमिच्छा मूर्छा स्नेहः कांक्षाभिष्वङ्ग इत्यनर्थान्तरम् । तस्यास्य लोभस्य तीव्रादिभावाश्रितानि निदर्शनानि भवन्ति । तद्यथा लाक्षारागसदृशः कर्दमरागसदृशः कुसुम्भरागसदृशो हरिद्रारागसदृश इति । अत्राप्युपसंहारनिगमने क्रोधनिदर्शनैर्व्याख्याते ॥ लोभ, गार्ध्य, इच्छा, मूर्छा, स्नेह, कांक्षा तथा अभिषङ्ग इत्यादि सब एकार्थवाचक शब्द हैं । इस प्रकार राग आदि पर्यायोंसे वाच्य इस लोभके भी तीव्र मध्यम आदि भा - वोंके आश्रित दृष्टान्त हैं। जैसे - लाक्षारागसदृश ( लाख वा लाह के रंगके समान ) - कर्दम, (कीचड़ ) रागसदृश, कुसुम्भरागसदृश, तथा हरिद्रा ( हल्दी ) रागसदृश; ये चार प्रकारके रंग लोभके दृष्टान्त हैं । इनके भी संग्रह नाशादिकी रीति क्रोधके दृष्टान्तों व्याख्यात समझलेनी चाहिये । एषां क्रोधादीनां चतुर्णी कषायाणां प्रत्यनीकभूताः प्रतिघाततवो भवन्ति । तद्यथा । क्षमा क्रोधस्य मार्दवं मानस्यार्जवं मायायाः संतोषो लोभस्येति । इन क्रोध आदि चार प्रकारके कषायों के प्रतिपक्षभूत इनके नाशक हेतु ये होते हैं । जैसे - क्षमा क्रोध कषायके नाशमें हेतु है, मार्दव ( मृदुता वा नम्रता ) मानकषायके ना में हेतु है, आर्जव ( सरल स्वभाव वा कपटराहित्य व्यवहार ) मायाका प्रतिपक्ष तथा उसके नाशमें हेतु है । और सन्तोष ( यथाप्राप्त वस्तुमें तृप्ति ) लोभका प्रतिपक्ष और उसके नाशमें कारण है । इस कारण क्रोधादि कषायोंके नाशार्थ क्षमा आदिका धारण अवश्यं कर्तव्य है ॥ १० ॥ नारक तैर्यग्योनमानुषदैवानि ॥ ११ ॥ सूत्रार्थ - नारक, तैर्यग्योन, मानुष और दैव यह चार आयुषके भेद हैं । भाष्यम् - आयुष्कं चतुर्भेदं नारकं तैर्यग्योनं मानुषं दैवमिति । विशेषव्याख्या – अब पञ्चम उत्तरप्रकृति जो आयुष्क ( आयुष् ) है उसके नारक, तैर्यग्योन, मानुष और दैव इन भेदोंसे चार भेद हैं ॥ ११ ॥ गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्गनिर्माणबन्धन सङ्घातसंस्थानसंहननस्पर्शर सगन्धवर्णानुपूर्व्यगुरुलघूपघातपराघातातपोद्योतोच्छ्रासविहायोगतयः प्रत्येकशरीर ससुभगसुखरशुभसूक्ष्मपर्याप्तस्थिरादेययशांसि सेतराणि तीर्थकृत्त्वं च ॥ १२ ॥ भाष्यम् – गतिनाम जातिनाम शरीरनाम अङ्गोपाङ्गनाम निर्माणनाम बन्धननाम संघातनाम संस्थाननाम संहनननाम स्पर्शनाम रसनाम गन्धनाम वर्णनाम आनुपूर्वी - · नाम अगुरुलघुनाम उपघातनाम पराघातनाम आतपनाम उद्योतनाम उच्छ्वासनाम विहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004021
Book TitleSabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurprasad Sharma
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages276
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size6 MB
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