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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् विशेषव्याख्या-कन्दर्पादि पांच अनर्थदण्डविरतिव्रतके अतिचार हैं। उनमें रागसंयुक्त तथा असभ्य वाणीका प्रयोग करना अर्थात् रागपूर्ण तथा सभ्यताविरुद्ध भाषण, और हास्य करना, यह कन्दर्पनामा अतिचार है १ । और ये ही दोनों, अर्थात् रागसंयुक्त असभ्य भाषण और हास्य यदि दुष्ट कायके (शरीरके )संचारसहित हों तो वह कौकुच्य अतिचार है २। असम्बद्ध (परस्परविरुद्ध तथा निरर्थक )अधिक प्रलाप करना, यह मौखर्यनामा अतिचार है ३ । और असमीक्ष्याधिकरण तो लोकमें प्रसिद्ध ही है; अर्थात् विना विचारे आवश्यकसे अधिक सामग्री एकत्रित करलेना, यह असमीक्ष्याधिकरण है ४ । और उपभोगसे अधिक वस्तुका रखना, यह उपभोगाधिकत्वनामक पञ्चम अतिचार है ५ ॥२७॥
योगदुष्पणिधानानादस्मृत्यनुपस्थापनानि ॥२८॥ सूत्रार्थ-कायदुष्प्रणिधान, १ वाग्दुष्प्रणिधान, २ तथा मनोदुष्प्रणिधान, ३ अनादर ४ और स्मृत्यनुपस्थान ५ ये पांच सामायिक व्रतके अतिचार हैं ॥ २८ ॥
भाष्यम्-कायदुष्प्रणिधानं वाग्दुष्प्रणिधानं मनोदुष्प्रणिधानमनादरः स्मृत्यनुपस्थापनमित्येते पञ्च सामायिकव्रतस्यातिचारा भवन्ति ॥
विशेषव्याख्या-कायआदि तीनों योगोंका दुष्प्रणिधान अर्थात् जिस प्रकार सावधा. नीसे विधिपूर्वक कायआदि योगोंको सामायिकके समयमें लगाना चाहिये उस प्रकार न लगाना यही काय, वाग् तथा मनोरूप योगोंके दुष्पणिधान हैं अर्थात् काययोग दुप्रणिधान १ वागयोग दुष्प्रणिधान २ मनोयोग दुष्प्रणिधान ३ हैं तथा अनादर, सामायिकको आदरसे न करना, किन्तु बेगारसी टाल देना यही अनादर अतिचार है । ४ । और पूर्णरूपसे सामायिककी विधि कैसे करनी चाहिये तथा किसका ध्यान, किस आसन वा किस विधिसे इत्यादि विषयोंकी स्मृति (स्मरण )न रहना अथवा सामायिक करना ही भूलजाना यह स्मृत्यनुपस्थाननामा पञ्चम अतिचार है । ५ । तीन योगोंका दुष्प्रणिधानचतुर्थ (चौथा ) अनादर, और पञ्चम स्मृत्यनुपस्थान ये पांचो सामायिक व्रतके अतीचार अर्थात् व्यतिक्रम जानने चाहिये ॥ २८ ॥
अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादाननिक्षेपसंस्तारोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थापनानि ॥ २९॥
सूत्रार्थ- अप्रत्यवेक्षित तथा अप्रमार्जित स्थलमें उत्सर्ग १ अप्रत्यवेक्षित तथा अप्रमार्जित पदार्थका आदान तथा निक्षेप, २ अप्रत्यवेक्षित तथा अप्रमार्जित संस्तारोपक्रम ३ अनादर ४ तथा स्मृत्यनुपस्थान, ५ ये पांच पौषधोपवासव्रतके अतिचार हैं ॥ २९ ॥
भाष्यम्-अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जिते उत्सर्गः अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितस्यादाननिक्षेपौ अप्र
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