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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
१६१ प्रकटीकरण हैं । अर्थान्तर वह है-जैसे गौको अश्व कहे और अश्वको गौ । गर्दा; हिंसा, पारुष्यवचन (कठोर मर्मवेधी वचन) तथा पैशुन्य (चुगुली) आदि युक्तवचन, यह यद्यपि सत्य हो तथापि गर्हित (निन्दित)होनेसे असत्यही है । अर्थात् गर्हित सत्यभी असत्यवत् है ॥ ९ ॥
अत्राह । अथ स्तेयं किमिति । अत्रोच्यते-- अब यहांपर कहते हैं कि स्तेय क्या है ? इसके उत्तरमें यह सूत्र कहते हैं ।
अदत्तादानं स्तेयम् ॥१०॥ सूत्रार्थ-न दिये हुए पदार्थका ग्रहण करना स्तेय है ॥ १० ॥ भाष्यम्-स्तेयबुद्ध्या परैरदत्तस्य परिगृहीतस्य तृणादेव्यजातस्यादानं स्तेयम् ॥ विशेषव्याख्या-स्तेय(चौर्य) बुद्धिसे अदत्त अर्थात् जिनसे वह पदार्थ सम्बध रखता है उन पुरुषोंके बिना दियेहुए परिगृहीत जो तृणसे आदि लेके यावत् द्रव्य हैं उनका ग्रहण करना अर्थात् लेलेना, इसीको स्तेय चोरी कहते हैं ॥ १० ॥
अत्राह । अथाब्रह्म किमिति । अत्रोच्यतेअब इसके पश्चात् कहते हैं कि 'अब्रह्म' क्या है ? इसपर यह कहते हैं
मैथुनमब्रह्म ॥११॥ भाष्यम्-स्त्रीपुंसयोमिथुनभावो मिथुनकर्म वा मैथुनं तदब्रह्म ।
सूत्रार्थ-स्त्रीपुरुषका जो मिथुनभाव वा मैथुनकर्म अथवा मैथुन (स्त्रीप्रसङ्ग) है, उसको अब्रह्म अर्थात् मैथुनसेवन कहते हैं ॥ ११ ॥
अत्राह । अथ परिग्रहः क इति । अत्रोच्यते--- अब यहांपर कहते हैं कि इसके पश्चात् परिग्रह क्या है ? इसपर कहते हैं।
मूछी परिग्रहः ॥ १२॥ सूत्रार्थ-मूर्छाको परिग्रह कहते हैं ॥ १२ ॥ भाष्यम्-चेतनावत्स्वचेतनेषु च बाह्याभ्यन्तरेषु द्रव्येषु मूर्छा परिग्रहः । इच्छा प्रार्थना कामोऽभिलाषः कांक्षा गार्ड्य मूर्छत्यनान्तरम् ॥
विशेषव्याख्या-चेतनावान् हों वा अचेतन हों, ऐसे चेतनाचेतन बाह्य तथा आभ्यन्तर द्रव्योंमें जो मूर्छा (तदर्जन रक्षणआदिकी अभिलाषा ) है उसको परिग्रह कहते हैं । इच्छा, प्रार्थना, काम, अभिलाष, कांक्षा, गार्थ्य, परिग्रह, तथा मूर्छा ये सब समानार्थक शब्द हैं ॥ १२ ॥ __ अत्राह । गृह्णीमस्तावद्रतानि । अथ व्रती क इति । अत्रोच्यते--
अब यहांपर कहते हैं कि-व्रतोंको जैसा आपने कहा वैसा हम ग्रहण करते हैं, परंतु व्रती कौन है ? इसके उत्तरके लिये यह सूत्र है
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