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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
१४९ विशेषव्याख्या-परमर्षिरूप भगवान् केवलियोंका, अर्हत्प्रोक्त (अर्हत् भगवान्से कथित) साङ्गोपाङ्ग श्रुत चतुवर्ण सङ्घका, पञ्चमहाव्रतसाधनीभूत धर्मका, तथा भवनवासी आदि चतुर्विध देवोंका जो अवर्णवाद ८ अर्थात् निंदाप्रवाद, यह दर्शनमोहकर्मके आस्रवका कारण है ॥ १४ ॥
कषायोदयात्तीवात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्य ॥ १५॥ भाष्यम्-कषायोदयात्तीवात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्यास्रवो भवति ॥
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-कषायोंके उदयसे तीव्र जो आत्माके परिणाम हैं वे चारित्रमोहनीय कर्मके आस्रवके कारण होते हैं ॥ १५ ॥
बहारम्भपरिग्रहत्वं च नारकस्यायुषः ॥१६॥ भाष्यम्-बह्वारम्भता बहुपरिग्रहता च नारकस्यायुष आस्रवो भवति ॥
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-अधिक आरम्भ तथा अधिक परिग्रह नरककी आयुके आस्रवका कारण होता है ॥ १६ ॥
माया तैर्यग्योनस्य ॥ १७॥ भाष्यम्-माया तैर्यग्योनस्यायुष आस्रवो भवति ॥
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-माया (कपटचारिता) तैर्यग्योनिकी आयुके आसवका कारण होती है ॥ १७॥
अल्पारम्भपरिग्रहत्वं खभावमार्दवार्जवं च मानुषस्य ॥१८॥ भाष्यम्-अल्पारम्भपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवार्जवं च मानुषस्यायुष आस्रवो भवति ॥
सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-अल्पारंभ तथा अल्पपरिग्रह, अर्थात् अल्पकार्योंका आरंभ और परिग्रह जैसे कि जितनेमें अपना कार्य चल जाय उतनेही कार्योंका आरंभ करना, तथा जितनेमें अपना प्रयोजन हो जाय उतनाही संचय वा परिग्रह करना, तथा खभावकी कोमलता व सरलता ये सब मानुष आयुषके आस्रवके हेतु हैं ॥ १८ ॥
निःशीलवतत्वं च सर्वेषाम् ॥ १९॥ सूत्रार्थ:-शील व व्रतसे रहित होना सब प्रकारकी आयुवालोंके आस्रवका हेतु है ॥ १९ ॥ __ भाष्यम्-निःशीलव्रतत्वं च सर्वेषां नारकतैर्यग्योनमानुषाणामायुषामास्रवो भवति । यथोक्तानि च।
विशेषव्याख्या-शील तथा व्रतोंसे रहित होना, अर्थात् शील तथा व्रतोंका जो अभाव है वह नारक, तैर्यग्योन, तथा मानुष, इन सब आयुष्योंके आस्रवका हेतु है । और जो जिस आयुषके आस्रवके कारण कह आये हैं वेभी हैं । जैसे-अधिक आरम्भ
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