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सुधारके पदें। आजकलकी पद्धतिके अनुसार इस ग्रन्थकी भूमिका विद्वद्वर्य पं० ठाकुरप्रसादजीको ही लिखनी चाहिये थी, परन्तु उनको अनुपस्थितिके कारण प्रकाशक महाशयके आग्रहसे भूमिकाका कार्य मुझे करना पड़ा है। इसमें मेरी अल्पज्ञता तथा प्रमादसे कुछ भूल हुई हो, तो उदार पाठक क्षमा करें ।
अन्तमें श्रीपरमश्रुतप्रभावकमंडलके सभ्योंको मैं सच्चे हृदयसे धन्यवाद देता हूं, जो जैनधर्मके अपूर्व ग्रन्थभंडारको प्रकाशित करनेमें दत्तचित्त हैं । इत्यलम् विद्वद्वरेषु
चंदाबाडी-गिरगांव बम्बई । २०-१-०६ई.
जिनवाणीका सेवकदेवरी (सागर) निवासी. नाथूराम प्रेमी.
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