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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् धनुष् है । विष्कम्भसे अर्द्धबाहल्य उँचाई होती है । सूर्य आदि सब ज्योतिष्क मनुष्यलोकमें होते हैं । और मनुष्यलोकके बाहर तो विष्कम्भ तथा बाहल्यसे अर्द्धभाग होते हैं । ये ज्योतिष्कदेवों के विमान लोककी स्थितिसे यद्यपि प्रसक्त अवस्थित गति अर्थात् गतिमें तत्पर तथा निवृत्त गतिवाले हैं तथापि ऋद्धिविशेषके लिये, आभियोग्य नाम कर्मके उदयसे नित्यगतिसे प्रीति करनेवाले देवता इनको भ्रमण कराते हैं । जैसे—इनके विमानोंके अग्रभागमें सिंह रहते हैं, दक्षिणभागमें गजेन्द्र, पृष्ठभागमें वृषभ (बैल) और उत्तरभागमें अतिवेगशाली तुरङ्ग (घोड़े) रहते हैं ।
तत्कृतः कालविभागः ॥१५॥ सूत्रार्थ:-नित्यगतिवाले ज्योतिष्क देवोंसे कालका विभाग होता है। भाष्यम्-कालोऽनन्तसमयो वर्तनादिलक्षण इत्युक्तम् । तस्य विभागो ज्योतिष्काणां गतिविशेषकृतश्चारविशेषेण हेतुना । तैः कृतस्तत्कृतः । तद्यथा-अणुभागाश्चारा अंशाः कला लवा नालिका मुहूर्ता दिवसरात्रयः पक्षा मासा ऋतवोऽयनानि संवत्सरा युगमिति लौकिकसमो विभागः ।। पुनरन्यो विकल्पः प्रत्युत्पन्नोऽतीतोऽनागत इति त्रिविधः ॥ पुनत्रिविधः परिभाष्यते सङ्खयोऽसङ्खथेयोऽनन्त इति ।।
विशेषव्याख्याः —'अनन्त समययुक्त, वर्तना आदिलक्षणसहित काल है' ऐसा कहा है (अध्या. ५ सू. २२,३९)। उस अनन्तसमययुक्त तथा वर्तना-आदिलक्षणसहित कालका विभाग ज्योतिष्क देवोंकी गतिविशेषकृत है । अर्थात् ज्योतिष्कदेवोंकी जो संचरण वा भ्रमण विशेषगति है वही कालके विभागों हेतु है । 'तत्कृतः' यहांपर समास 'तैः कृतः उनके गतिविशेषोंसे कृत, ऐसा समझना चाहिये । कालके विभाग, जैसे-अणुभाग (अति सूक्ष्मभाग), चार, अंश, कला, लव, नालिका, मुहूर्त, दिवस, रात्रि, पक्ष, मास, ऋतु, अयन (दक्षिणायन वा उत्तरायण) 'छ: महीनेका अयन होता है' वर्ष और युग, यह सब लौकिकके समान कालका विभाग है। पुनः कालका अन्य विकल्प (भाग) भी है । जैसे-प्रत्युत्पन्न (वर्तमान), अतीत (भूत) और अनागत अर्थात् भविष्य । यह तीन प्रकारका कालका भेद है । वही काल पुनः तीन प्रकारका निर्धारित होता है। जैसे-संख्येय, असंख्येय और अनंत ।
तत्र परमसूक्ष्मक्रियस्य सर्वजघन्यगतिपरिणतस्य परमाणोः स्वावगाहनक्षेत्रव्यतिक्रमकालः समय इत्युच्यते परमदुरधिगमोऽनिर्देश्यः । तं हि भगवन्तः परमर्षयः केवलिनो विदन्ति न तु निर्दिशन्ति परमनिरुद्धत्वात् । परमनिरुद्धे हि तस्मिन् भाषाद्रव्याणां ग्रहणनिसर्गयोः करणप्रयोगासम्भव इति । ते त्वसङ्ख्या आवलिका । ताः सङ्ख्या उछासस्तथा निःश्वासः । तौ बलवतः पद्विन्द्रियस्य कल्यस्य मध्यमवयसः स्वस्थमनसः पुंसः प्राणः । ते सप्त स्तोकः। १ एक प्रकारके ज्योतिष्क देवही सिंहादिककी आकृति धारण किये होते हैं।
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