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पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्यानमाला
समाधान नं. १ - लब्धि तथा उपयोग दोनों पर्यायें हैं, परन्तु उपयोग लब्धिरूप पर्याय नहीं है । उपयोगव्यापारात्मक पर्याय है । लब्धि अव्यापारात्मक पर्याय है ।
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समाधान नं. २- अस्तित्व आदि सामान्य गुणों की पर्यायें मिथ्यात्वी के भी शुद्ध हैं । (शुद्ध = परनिरपेक्ष)
समाधान नं. ३ - अभव्य तथा अभव्य समान भव्य, इन दोनों में से (भविष्य की पर्यायों में से) केवलज्ञान पर्याय किसमें है, किसमें नहीं है, यह निर्णय केवली गम्य है । परन्तु दूसरे दिन आपने कहा था
अभव्य समान भव्यों में अक्षयानन्त पर्यायों के बाद भी केवलज्ञान पर्याय नहीं है । दूरातिदूर भव्य तथा अभव्य समान भव्य, एक ही बात है ।
समाधान नं. ४ - औदारिक शरीर आदि नोकर्मों में भी प्रकृति, स्थिति व प्रदेश की तरह अनुभाग भी नियम से है । अन्यथा औदारिक शरीर फल कैसे देगा ।
समाधान नं. ५ - दोनों प्रकार के तैजस शरीर नहीं दिखते । (जहाँ तक मुझे याद है, उसके आधार पर मैं (फूलचन्द्र ) उत्तर दे रहा हूँ)
समाधान नं. ६ - अवधिज्ञानावरण के क्षय का मतलब केवलज्ञान उत्पन्न हो गया । अवधिज्ञानावरण का क्षय बारहवें गुणस्थान से पूर्व नहीं होता ।
समाधान नं. ७ - पंचमकाल में जन्म लेने वाला जीव मन:पर्यय ज्ञान का स्वामी नहीं हो सकता ।
समाधान नं. ८ - प्रत्येक संसारी प्राणी को पाँचों अन्तराय कर्मों का क्षयोपशम है । निगोद के भी पाँचों अन्तराय कर्मों का क्षयोपशम नियम से है ।
समाधान नं. ९ - क्षुल्लक यद्यपि सूक्ष्म असत्य भी नहीं बोलता, तथापि उसके सूक्ष्म असत्य के त्याग का नियम नहीं, अत: वह स्थूल असत्य का त्यागी ही गिना जाएगा । इसका कारण यह है कि पाँचवें गुणस्थान की कषायों से छठे गुणस्थान की कषायें हीन कोटि की हैं । फलस्वरूप छठे गुणस्थान में तो वचन सर्वथा असत्यता रहित ही होगा ।
सूक्ष्म असत्य का उदाहरण- जैसे पका आम सामने पड़ा है। उस पके आम को कहना कि पका आम है, स्थूल सत्य है । परन्तु सामने पड़ा हुआ आम ९९.९% ही पका हुआ है । परन्तु इस ०.१ प्रतिशत कचाई को कहने वाला भी नहीं जानता है । यहाँ कोई अवधिज्ञानी आकर कहे कि "यह आम कुछ अंशों में अपक्व भी है तथा बहुत अंशों में पक्व । अत: तुम्हारा कथन कि आम पका है, सूक्ष्म असत्य है । सारत: जो सामान्य जनों
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