SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३ पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला संज्ञा है । (धवल ६/२१३) इस कारण जैसे उदीरणा आयु की सदा होती रहती है । इसीलिए तो सप्तम नरक के नारकी तथा सर्वार्थसिद्धि देव के एक आवलीकम ३३ सागरों तक निरन्तर उदीरणा, आयु कर्म की होती रहती है । (धवल १५/६३) : वैसे ही अपकर्षण भी आयु का नित्य होता रहता है । परन्तु विशेष इतना ज्ञातव्य है कि इस अपकर्षण व उदीरणा द्वारा आयु कर्म के उपरिम स्थितियों के निषेक पूर्ण शून्य या रिक्त नहीं हो जाते, क्योंकि किसी भी निषेक में से उसके असंख्यातवें भाग प्रमाण परमाणु (निषेक में असंख्यात लोक या पल्य के असंख्यातवें भाग का भाग देने पर जो एक भाग आवे तत्प्रमाण परमाणु) ही अपकर्षण को प्राप्त होकर उदयावली में प्रविष्ट होते हैं तथा वे उदीरणा संज्ञा को प्राप्त होते हैं । (धवल १५ / ४३, धवल ६/२१४) 1 यदि यह पूछा जाए कि- "तो फिर आयु कर्म का कदलीघात किस का नाम है, तो उत्तर है कि - कदलीघात में शेष भोगने योग्य आयुकर्म के बचे निषेकों को नीचे की स्थितियों में जहाँ गिराया जाता है वहाँ कदलीघात नाम प्राप्त होता है । यह तब होता है जबकि बाहर विष ग्रहण करना, शस्त्र प्रहार आदि (देखो आयुबंध नियम न. १९) कारण मिलें । इस अकालमरण के लिए पूर्व भव में इतना ही आयुबंध हो, (जितने वर्षों में कि अकालमरण हो जाना है) ऐसा नहीं है। बल्कि ऐसा है कि जिसने मात्र एक बार आयु बंध किया हो उसका भी अकाल मरण हो सकता है। जिसने पूर्व भव में दो बार (दो अपकर्षों मे) आयु बंध किया हो उसका भी अकालमरण हो सकता है । इस प्रकार जिसने तीन बार (तीन अपकर्षों द्वारा) या चार बार (यानी चार अपकर्षों द्वारा) या पाँच बार (यानी ५ अपकर्षों द्वारा) या ६ या ७ या ८ बार आयु बंध किया हो उसका भी अकाल मरण हो सकता है । अकालमरण के समय जितने आयु कर्म के निषेक भोगने योग्य कर दिए जाते हैं । अर्थात् अन्तर्मुहूर्त प्रमाण निषेकों को छोड़कर शेष सब ऊपर के निषेक (पूरे-के पूरे निषेक) नीचे अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति में डाल दिए जाते हैं तथा एक ही समय में यह सब काम हो जाता है । (धवल १० पृ. २४४ में सम्पूर्ण विधान दिखिए) विशिष्ट बात यह है कि जो जीव पूर्व भव में ज्यादा आयु बंध कर, फिर वर्तमान भव में उस बद्ध आयु से कम काल प्रमाण ही जीवित रहता है तथा विषादि से मरण करता है उसके ही कदलीघात मरण होता है । कदलीघात मरण मान लो हमारा १० वर्ष की आयु में ही हो, इसका अर्थ यह लगाना कि पूर्व में मैंने १० वर्ष प्रमाण ही आयु के निषेक बांधे थे, यह मानना अत्यन्त हास्यास्पद है । 1 मान लो किसी जीव ने पूर्व भव में १०० वर्ष आयु बांधी तथा फिर मनुष्य बना । अब उसके मनुष्यायु के सता में १०० वर्ष प्रमाण निषेक हैं। परन्तु १० वर्ष जीकर ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004020
Book TitleDhaval Jaydhaval Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy