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पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला
जयधवल पु. ११ :
(१) सम्यग्मिथ्यात्वी संयम को नहीं पाता । पृ. ५६
(२) वेदक सम्यक्त्व से च्युत होकर कोई जीव अधिक से अधिक ७ दिन रात तक मिथ्यात्वी नहीं होता और मिथ्यात्व को त्याग कर अधिक से अधिक ७ दिन रात तक कोई जीव वेदक सम्यक्त्वी नहीं होता । पृ. १५२
(३) सम्यक्त्व से च्युत: ऐसे प्रथम समयवर्ती मिथ्यात्वी का मरण संभव नहीं (यह भी देखें गो.क. पृ. २३८ मुख्तारी टीका) पृ. १४७
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जयधवल पु. १२ :
(१) मिथ्यात्व गुणस्थान में सातिशयमिध्यात्वी के अविपाक निर्जरा (गुणश्रेणि) । पृ. २६४
(२) लोभ के २० पर्यायवाची शब्द- काम, राग, निदान, छन्द, सुत, प्रेय दोष स्नेह अनुराग आशा मूर्च्छा इच्छा आदि हैं । पृ. १९२
(३) आहारकद्विक् की उद्धेलना बिना उपशमसम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती । पृ. २०९ (४) हमारे आयु कर्म की नित्य उदीरणा हो रही है । पृ. २२०
(५) समय का अर्थ काल ही नहीं, व्यवस्था भी है, समय का अर्थ कषाय भी है। पृ. १४१
(६) कर्म स्थिति के समस्त ही निषेकों में लता दारु अस्थि व शैल, चारों प्रकार का अनुभाग पाया जाता है । पृ. १५८
(७) उपशान्त का अर्थ अनुदय है। पृ. १६७
(८) अनुभाग काण्डक घात (विशुद्ध जीव के) अशुभ कर्मों का होता है । पृ. २६१
(९) प्रथम समयवर्ती सम्यक्त्वी मिथ्यात्व के तीन टुकड़े करता है । पृ. २८१ (जयध. ३/१९५-९६, ४/२५, ४१९, क.पा.सु. पृ. ६२८ आदि)
(१०) प्रथम बार सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद मिथ्यात्व में जाना जरूरी नहीं । पृ. ३१७
जयधवल पु. १३ :
(१) अनन्तानुबंधी का अन्तरकरण नहीं होता । पृ. २००
(२) मनुष्यों में क्षायिक सम्यक्त्वी संख्यात हजार हैं। पृ. १० (३) दो मत :- पृ. २१२, २१६, २५९, ४६, ५४ आदि ।
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