________________
पं. फूलचन्द्रशास्त्री व्याख्यानमाला प्राप्त की । जहाँ पं. जगन्मोहनलाल सिद्धान्तशास्त्री तथा स्व. कैलाशचन्द्र सि. शास्त्री आपके सहाध्यायी थे तथा स्व.पं. बंधीधर जी न्यायालंकार आपके अध्यापक थे। फिर बनारस में २-३ मास तक सेवा की, २५/- मासिक में । फिर इनका विवाह हुआ, पुतली बाई के साथ । बाद में साढूमल विद्यालय में धर्म प्रधानाध्यापक बने। फिर १९२४ ई. से १९२८ तक बनारस में धर्माध्यापक रहे। फिर बीना में धर्माध्यापक बने । वहीं रहते कांग्रेस आन्दोलन में भी सम्मिलित होते रहे । बीना के बाद ६ वर्ष नातेपुते (सोलापुर) रहे । वहाँ भी रहते हुए आप कांग्रेस कमेटी के सदस्य होने से तत्संबंधी क्रियाकलापों में भी लिप्त रहे । वहीं पर आपने शान्ति सिन्धु पत्रिका का दो वर्ष तक संपादन/प्रकाशन किया। सन् १९३६-३७ में (वि.सं. २४६३) द्रव्यमन/भावमन संबंधी विवाद सुलझाया। नातेपुते से बीना आए। फिर अमरावती जाकर आपने धवल पु. १ का अनुवाद किया। चार पुस्तकों का प्रकाशन आपके वहाँ रहते हुआ । सन् १९३८ में गजरथ विरोधी आंदोलन भी आपने प्रारंभ किया। इसके लिए आपने केवलारी में उपवास
भी किया। भारत छोड़ो आन्दोलन में आप झांसी जेल में भी ४१ दिन तक रहे। १९४१ ई. में बनारस आकर आप ने कषायपाहुड (जयधवला) का सम्पादन प्रारंभ कर दिया। इसी बीच ऐसी भी स्थिति आई कि पं.सा. लिवर की व्याधि से पीड़ित हुए। अर्थ विपन्नता वश गहने बेच कर आपने काम चलाया। पूज्यपाद बड़े वर्णी जी ने इस आपत्तिकाल में आपको बड़ा ही सहयोग दिया।
फिर एक समय षटखण्डागम सत् प्ररूपणा के ९३वें सूत्र में संजद(प्रमतसंयत) पद को लेकर विवाद चला । यह पद वहाँ नहीं होना चाहिए, इस पक्ष में पं. हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, पं. मक्खनलाल जी शास्त्री, पं. रामप्रसाद सि. शास्त्री आदि थे। संजद पद होना चाहिए, इस पक्ष में गुरुजी, पं. फूलचन्द्र जी, पं. कैलाशचन्द्र जी तथा बंशीधर जी न्यायालंकार थे। इस विवाद ने बहुत बड़ा रूप लिया था। अंत में पं. फूलचन्द्र जी के पक्ष की बात ही सत्य साबित हुई।
इसके बाद आपने महाधवला का सम्पादन अनुवाद कार्य भी प्रारम्भ कर दिया। सन् १९४९ से ५१ तक आपने भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित मासिक पत्रिका “ज्ञानोदय" का भी सम्पादन किया। अपने जीवनदाता पूज्य महापुरुष १०५ बड़े वर्णी जी के स्मारक के रूप में आपने गणेशवर्णी ग्रन्थमाला की स्थापना की जो आज गणेशवर्णी शोध संस्थान के नाम से विख्यात है । सन् १९४६ में आपने ललितपुर में गणेशवर्णी इण्टर कॉलेज की स्थापना में योग दिया। बाद में जयपुर खानिया तत्त्वचर्चा हुई, जिसमें आप अग्रणी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org