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पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्यानमाला
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योग की प्रस्तावना में गणित ज्योतिष एवं गणित का स्वरूप स्पष्ट किया गया है । [28] तिलोयपण्णत्ती के गणित में संख्या सिद्धान्त, ज्यामिति अवधारणाएँ, अंक गणना, बीज गणित, मापिकी विधियाँ, संदृष्टियाँ तथा ज्योतिष सम्बन्धी गणनाएँ हैं । [29] जैन पंचांग का स्वरूप त्रिलोकसार में वर्णित सामग्री द्वारा तथा सूर्यप्रज्ञप्ति, चंद्रप्रज्ञप्ति ग्रंथों की सामग्री द्वारा निदर्शित किया जा सकता है। [30] ये सभी वैज्ञानिकताएँ हैं जो इन करणानुयोग के ग्रन्थों में उपलब्ध हैं । जैन ज्योतिष में वस्तुतः एक सूची योजना है, चपटी पृथ्वी का छाया माप संबंधी ज्योतिष गणित है, मेरु, खगोल अक्ष रूप है, बीथियाँ विभिन्न सूर्य, चंद्र, तारों आदि की वर्णित हैं । गति भी उनकी दी गई है, दो सूर्य, दो चंन्द्र को गणितीय सुविधाओं हेतु युक्तिपूर्वक वर्णित किया गया है - इनसे वही पंचांग बनता है जो एक सूर्य, एक चंद्र को लेकर बनाया जाता है। [31] इनके चार्ट एवं सारणियाँ उपलब्ध हैं ।
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पुद्गल विषयक विज्ञान
दो शब्दों पुद् एवं गल से बना हुआ यह शब्द भौतिकशास्त्र की उत्पाद एवं व्यय (Creation and Annihilation) क्रियाओं से जुड़ा है। पुद्गल परमाणु के अवगाहन के आधार से प्रदेश की कल्पना है और उसके गमन के आधार से समय (अविभाज्य काल खंड) की कल्पना है जिनका आधार उपमा प्रमाण में लेकर सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगश्रेणी, जगप्रतर, घनलोक तथा पल्य और सागर के प्रमाण रचित किये गये हैं । इनके आधार पर अनेक अस्तित्वशील राशियों के क्षेत्र, काल, प्रमाण बतलाये गये हैं, जिनसे उनके द्रव्य (संख्या) प्रमाण की अधिक जानकारी मिल सके। प्रोफेसर जे. सी. सिकदार ने विभिन्न दर्शनों में दिये गये परमाणुओं से जैन पुगल सम्बन्धी ज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन को अपनी शोध का विषय बनाया था । देखिये Concept of Matter in Jaina Philosophy जो अब पार्श्वनाथ विद्याश्रम बनारस द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है । [32] वह एक दार्शनिक अध्ययन है और हम इस अध्ययन को वैज्ञानिक रूप में लाने का प्रयास करना आवश्यक समझते हैं । जब भी किसी पदार्थ या वस्तुओं के संग्रह परिमाण बोधक न्यास प्रस्तुत करते हैं तो उस न्यास के आधार पर वैज्ञानिक अध्ययन प्रारम्भ किया जा सकता है। गोम्मटसार जीवकांड और कर्मकांड में पुद्गल के किंचित् दार्शनिक विवेचन को देकर उसकी बंध प्रक्रिया बतलाकर सीधा कर्म सिद्धान्त में प्रयुक्त कर दिया है । बंध प्रक्रिया के सम्बन्ध में उसके स्निग्धत्व और रुक्षत्व गुणों के अंशों के बीच संबंध स्थापित कर विभिन्न प्रकार के अणु, स्कन्ध आदि की रचना बतलाई गयी है। [33] इस पर कई लेख भी प्रकाशित होते रहे हैं 23 प्रकार की वर्गणाएँ भी बतलाई गई हैं । [34] पुद्गल परमाणु के द्वारा शब्द, प्रकाशादि को पुद्गल द्रव्य की पर्यायरूप मान्यता दी गई है। [35] गुणों के अंश 0 से लेकर अनन्त प्राकृत संख्या रूप, 0 से लेकर 1, 3,
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