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शिष्यका भय दूर करना
- आर्या यद्यपि कदाचिदस्मिन् विपाकमधुरं तदात्वकटु किंचित् । त्वं तस्मान्मा भैषीयथातुरो भेषजादुग्रात् ॥३।।
अर्थ-यद्यपि इस शास्त्रविर्षे कहीं उपदेश किछू तत्काल कड़वा लागै तो तू तिसतै डरै मति । वह उपदेश कैसा है ? फल-काल विर्षे मीठा है। जैसैं रोगी उग्र कडवा औषध नाहीं डरै।। ___भावार्थ-जैसे स्याना रोगी यद्यपि ग्रहण कालविर्षे कोई औषध किछू कडवा भी लागै तो भी तिसत सुख होनेरूप मीठा फल होता जानि तिसितें डरै नांहीं, ताकौं आदरतै ग्रहण करै है। तैसैं तू स्याना संसारी है सो यद्यपि ग्रहण काल विर्षे कोई इस शास्त्रका उपदेश किछु असुहावना भी लागै तो भी तिसरौं सुख होनेरूप मीठा फल जानि तिसत डरै मति, तोकौं आदर तैं ग्रहण करना योग्य है। ___ आर्गे कोई तर्क करै कि उपदेश दाता तो बहुत हैं तातँ तुम्हारा निष्फल खेद करने करि कहा साध्य है, ऐसैं पूछ उत्तर कहै हैं :
आर्या
जना घनाश्च वाचालाः सुलभाःस्युवथोत्थिताः । , दुर्लभा ह्यन्तरार्दास्ते जगदम्युज्जिहीर्षवः ॥४॥ - अर्थ-मनुष्य तौ खोटा उपदेशादिरूप वचन कहनहारै अर मेघ खोटा गर्जन करनहारै बहुरि मनुष्य तौ निरर्थक महंतता करि उद्घति भये अर मेघ निरर्थक बादलारूप उठै, ऐसे तो मनुष्य वा मेघ सुलभ हैं। बहुरि मनुष्य तो अंतरंग धर्म बुद्धि करि भीजै अर मेघ अंतरंग जल करि भीजै, बहरि मनुष्य तो संसार दुःख तें जीवनिका उद्धार करनेकी इच्छाकों धारे अर मेघ अन्नादिक उपजावनै तै लोकका उद्धार करनेका कारणपणां को धारे, ऐसे मनुष्य वा मेघ दुर्लभ हैं।
भावार्थ-उपदेश दाता बहुत हैं, परन्तु हम जैसे धर्म बुद्धि तैं जीवनिका उद्धार करने कू उपदेश देवेंगे तैसैं उपदेश देनहारे थोरे हैं। तातै हमारा उद्यम निरर्थक नाहीं है।
आगे ऐसे हैं तो कैसे गुणनि करि संयुक्त उपदेश दाता होय है, ऐसा प्रश्न होत संतँ “प्राज्ञ" इत्यादि दोय श्लोक कहै हैं :
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