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विषय सूची कर्मके उदय-उदीरणासे साधु खेदखिन्न नहीं होते
२५७ निर्भय साधु गिरिगुफा आदिमें ध्यान करते हैं
२५८ मोक्षार्थी निस्पृह साधुओंका जीवन और मंगलकामना २५९-२६२ जो सांसारिक सुख-दुःखसे उदासीन रहते हैं सब ही मणिके समान प्रकाशरूप रहते हैं साधुओंका आचार आश्चर्यका स्थान है
२६४ वैशेषिकोंका मुक्तिमें गुणोंका अभाव मानना मिथ्या है जीवका स्वरूप सिद्धोंके युक्तिपूर्वक सुखका समर्थन आत्मानुशासनको जानकर उसके चिन्तवनका फल
२६८ गुरुके स्मरणपूर्वक कर्तारूपमें स्वयंके नामका उल्लेख
२६९ आदिजिन हम सबके लिये मंगल स्वरूप होनेकी कामना
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