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आत्मानुशासन
आगें कहै हैं अकल्याणकी करनहारी जो कषाय तिसिकूजीतिकरि अल्प है संसार जिनकै ते ऐसी सामग्रीकू प्राप्त होय हैं । सो दोय श्लोकनिसे दिखावै हैं
हिरणीछंद विषयविरतिः संगत्यागः कषायविनिग्रहः शमयमदमास्तत्त्वाभ्यासस्तपश्चरणोद्यमः । नियमितमनोवृत्तिक्तिर्जिनेषु दयालुता
भवति कृतिनः संसाराब्धेस्तटे निकटे सति ॥२२४॥ अर्थ-विषयसू विरक्तता, अर परिग्रहका त्याग, कषायनिका निग्रह, सम कहिए शांतता, रागादिका त्याग, दम कहिये मन इंद्रोनिका निरोध, यम कहिये यावत् जीव हिंसादिक पापनिका त्याग, तिनका धारण, तत्त्वका अभ्यास, तपश्चरणका उद्यम, मनकी वृत्तिका निरोध, जिनराजविर्षे भक्ति, जीवनिकी दया ए सामग्री विवेकी जीवनिकै संसार समुद्रका तट निकटि आये होय है।
मालिनीछंद यमनियमनितान्तः शान्तबाह्यान्तरात्मा परिणमितसमाधिः सर्वसत्त्वानुकम्पी । विहितहितमिताशी क्लेशजालं समूलं दहति निहतनिद्रो निश्चिताध्यात्मसारः ॥२२५॥ अर्थ-यम नियमादि योगकै मूल हैं। यम कहिए जन्मपर्यत अयोग क्रियाका त्याग, अर नियम कहिए घरी पल प्रहर पक्ष मास चातुर्मास बर्षादिकका संवर । सो यम नियमादिविर्षे साधु तत्पर हैं, महा शांत चित्त देहादिक बाह्य वस्तुनितें निवृत्त भया है भाव जिनका, अर समाधि कहिये निर्विकल्प दशा प्राप्त भया है सर्व जीव मात्रवि दया जिनकी, विहित कहिये शास्त्रोक्त अल्प है योग्य आहार जिनकै, दूरि करी है निद्रा, अर निश्चय किया है अध्यात्मका सार आत्मस्वभाव जिननें । निरंतर आत्मअनुभवविर्षे मगन हैं।
आगें कहै हैं जो ऐसे गुणनिकरि मंडित हैं मुनिराज ते निश्चैसेती मुक्तिके भाजन हो है।
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