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आत्मानुशासन
है । अर आगामी भी याका फल परम सुख है । बहुरि परद्रव्यका ग्रहणकरि आकुलता करनी सो दुःख है । सो ऐसी दशा भए वर्तमान भी दुखी हो है । अर आगामी भी याका फल दुःख ही है । बहुरि शास्त्रविषै भी विषय सेवनका फल दुःख ही कह्या है । सो जहां तृष्णाकरि आकुलता लीए विषय से है ताहीका फल दुख ही हो है । अर विषय सुख तो भोगभूमिया - कैं वा इंद्रादिककै घने पाईए है । परन्तु तहां तृष्णा थोरी है तातें ते कुगति
ही प्राप्त हो है । अर रंकादिकाकौं विषय सुख नांही मिले है । परंतु तृष्णाकरि आकुलित होइ नरकादिककौं पावै है । बहुरि जो तपश्चरणादिक कष्टका फल सुख कह्या है सो बाह्य तौ तपश्चरणादिक करै, अर अंतररंगविर्षं संक्लेशरूप दुःख नांही हो है । ताके तपका फल सुख कह्या है । बहुरि तपश्चरण करता दुःखी हो है । ताकै आर्त्तध्यान होनेकरि ताका फल दुःख ही है ! तातें जे जीव मोह घटनेतें वर्तमान सुखी हो है सो ही आगामी भी सुखको पाप है । अर मोह बंधनैतैं वर्तमान दुखी हो है, तातैं सो ही आगामी भी दुःख पावे है । शास्त्रविषै भी दुःख शोकादिकतैं असाताका बंध कह्या है । असाताका उदै आए दुखी ही हो है, तातैं दुःखका फल सुख है ऐसा भ्रमकरि परलोकके सुखका उपायतें परान्मुख मति होहु । बहुरि जो इहां विषय सुख छोडीये है सो निभ्री मिलै गुड़ का स्वाद बुरा लागे तैसें शांत रस पाए विषय सुख नीरस भासें तातैं विषय सुख न भोगवे है, किछू निकै छोडनेविषै दुःखी न हो है । तातैं विषय सुख छोडनेका भय मति करै । साचा धर्म साधनतैं वर्तमान भी सुख हो है, आगामी भी सुख हो है । सो ऐसा ही कार्य करना योग्य है ।
आगे पूछे हैं कि पुत्रादिकका मरणतैं तौ शोक होइ अर तिनकी उत्त्पत्तितें हर्ष होइ सो यहु उत्पत्ति कहा है, ऐसें पूछे उत्तर कहैं हैंमृत्योर्मृ त्वन्तरप्राप्तिरुत्पत्ति रिह
देहिनाम् |
तत्र प्रमुदितान्मन्ये पाश्चात्ये पक्षपातिनः || १८८ || अर्थ - इस संसार विषै देहधारी जीवनकै एक मरणतें अन्य मरणकी प्राप्ति ताका नाम उत्त्पत्ति है । तातैं जे तिस उत्त्पत्तिविषै हर्षवंत हो है तिनकौं मैं पीछे भया मरणविषै पक्षपाती मानौं हौं ।
भावार्थ- पुत्रादिकका जन्म भएं हर्ष करिये हैं अर तिनक मू पीछै शोक करिये है सो वै जन्म है सो नवीन मरण ही है, जातें आयुके नाशका नाम मरण है, सो समय समय आयु घटै है तातें याकै सदा काल मरण पाईए है। तहाँ पूर्व पर्यायसंबंधी मरण छोड़ि तवीन पर्यायसम्बन्धी मरणका प्रारंभ तिसहीका नाम जन्म है । ऐसे जन्मविर्षं जो हर्ष माने है ते नवीन
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