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________________ कर्मोदयकी विचित्रता ८१ बहुत काल तांई भोजनकौं न पावता संता भी पर घरनिप्रति भ्रमति भए तौ इहां केवल अपने कार्यके वशते औरनिकरि कहा परीषह न सहना, अपि तु कार्य अर्थ सहना ही योग्य है । भावार्थ–जो कार्य अर्थी होइ सो थोरा बहुत कष्ट सहना होइ तौ कष्ट भी सहै, परन्तु अपना कार्यकी सिद्धि करै । ताका उदाहरण देखो । वृषभनाथ सर्व राज्यकौं छोरि भोजनका अन्तराय हूवा कीया, तौ भी भोजनकै अथि जैसें दीन परघरि जाय तैसें पर घरि फिरता हुवा । जो ऐसे महान पुरुषोंने भी ऐसें कीया तो औरनिकों कहा लज्जा है ? अर औरनिकों कै सुगम सिद्धि होसी ? तातैं कार्यका अर्थि हुवा थोरा बहुत कष्ट सहिकरि मोक्षका साधन करना योग्य है । शिखरिणी छन्द पुरा गर्भादिन्द्रो मुकुलितकरः किंकर इव स्वयं स्रष्टा सृष्टेः पतिरथ निधीनां निजसुतः । क्षुधित्वा षण्मासान् स किल पुरुरप्याह जगतीमहो केनाप्यस्मिन् विलसितमलंघ्यं इतविधेः ॥ ११९॥ अर्थ – गर्भतें पहले ही इन्द्र है सो किंकरवत् जोरे हैं हाथ जानें ऐसा होता भया । अर आप सृष्टि जो कर्मभूमि ताका करनहारा भया, अर अपना पुत्र है सो निधिनिका स्वामी चक्रवत्ति भया ऐसा पुरुष जो आदिनाथ स्वामी सो भी छह मास पर्यन्त क्षुधवान होइ पृथिवी प्रति भ्रमत भया, सो बड़ा आश्चर्य है, इस संसारविषै निकृष्ट जो विधाता कर्म ताका विलास चरित्र है सो अतिशयकरि अलंध्य है । कोई याके मेटनेकौं समर्थ नांही । भावार्थ — कोई जानैगा कि सुख- सामग्री मिलाय दुःखका कारण दूरी करि सुखी हौंगा, सो संसारविषै ऐसा काहूका पुरुषार्थ नांही जो कर्मका उदय आवै अर ताकौँ दूरि करे । श्री वृषमनाथदेवकै इन्द्र समान तौ किंकर अर आप सर्व रचनाका कर्त्ता ऐसा पुरुषार्थकरि संयुक्त अर पुत्र चक्रवति, ऐसी सामग्री होतें भी अन्तरायके उदयतें छह मास पर्यन्त भोजनकै अर्थि भ्रमण कीया । तातें औरनिकी कहा वार्ता ? जातैं जो कर्मका उदयतें थोरा बहुत कष्ट उपजै ताकौं भी सहकरि, ऐसा ही चिन्तवन करना जो संसारविषै तौ कर्म ही बलवान है । तातें संसार अवस्थाका अभाव सो ही अपना हित कार्य है । ऐसें निश्चयकरि ताका साधन करना । ६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004018
Book TitleAtmanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1983
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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