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आत्मानुशासन
आर्य छन्द विज्ञाननिहतमोहं कुटीप्रवेशो विशुद्धकायमिव । त्यागः परिग्रहाणामवश्यमजरामरं कुरुते ॥१०८॥ अर्थ-जैसैं पवन साधनविषै कुटीप्रवेश किया है। सो निर्मल शरीरकौं करै, तैसैं भेदविज्ञानकरि नष्ट किया है मोह जानें ऐसे जीवकौं परिग्रहनिका त्याग है सो अवश्यमेव अजर अमर करै है।
भावार्थ-भेदविज्ञानकरि मोहका नाश करना सो सम्यग्ज्ञान सहित सम्यग्दर्शन है। बहुरि बाह्याभ्यन्त र परिग्रहका त्याग करना सो सम्यक्चारित्र है । तहां सम्यग्ज्ञानसहित सम्यग्दृष्टी जीव भया अर वह सम्यक्चारित्र अंगीकार करै तौ साक्षात् मोक्षमार्ग हुवा मोक्षको पावै ही पावै यामैं किछू संदेह नाहीं, जातै सर्व कारण मिलें कार्यका होना दुनिवार नांही है । तातै रत्नत्रयविर्षे कोई हीन होइ तो मोक्ष होनेविषै संदेह होइ, सर्व तीनौं मोक्षके कारण मिलै तब मोक्ष होइ ही होइ ऐसा निश्चय करना। ___ आगै विवेकपूर्वक त्यागी पुरुषनिविर्षे सर्वोत्तम त्यागकौं करता जो पुरुष ताकौं प्रशंसता संता सूत्र कहै हैं
_ अनुष्टप छन्द अभुक्त्वापि परित्यागात् स्वोच्छिष्टं विश्वमासितम् । येन चित्रं नमस्तस्मै कौमारब्रह्मचारिणे ॥१०९।। अर्थ-यहु आश्चर्यकारी कार्य है जिह जीव न भोगिकरि ही विषयनिका त्यागतें समस्त विषय अपनी झुठि समान किया तिस कुमार ब्रह्मचारीकै अथि हमारा नमस्कार होहु। ____ भावार्थ-पूर्वं तीन प्रकार त्यागी कहे हैं। तिनविर्षे जाकै भोग सामग्रीका निमित्त आनि बन्या है अर विरागतातें उनकौं बिना भोग किए ही छांडै हैं, कुमार अवस्थाविर्षे ही दीक्षा धारै हैं तो सर्वोत्कृष्ट त्यागी हैं। जो भोगिकरि छांडै तौ भी आश्चर्य नांही। इनै सामग्री मिलतें भी बिना भोग किए त्याग किया सो इनका बड़ा आश्चर्य है। जैसें काहूकै आगै
१. बायुका कुम्भक करके एकऽधिक धप्टा व दिनों तक भूमि में प्रवेशकर
अवस्थित रहना योगाभ्यासका यह एक प्रकार है।
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