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________________ संसार-दुःखके क्षयका उपाय १४९ शक्तिके अनुसार अहिंसादि पाँच व्रतोंको पालना चाहिए । ब्रह्मचर्यपर विशेष लक्ष्य देना चाहिए । बारह प्रकार तप करना चाहिए । आहार औषधि आदि दान करना चाहिए। नियम व प्रतिज्ञा लेनी चाहिए व अर्हन्त भगवानकी श्रद्धापूर्वक पूजा करनी चाहिए । इन्हीं उपायोंसे कर्मका नाश होगा । तृणतृल्यं परद्रव्यं परं च स्वशरीरवत् । पररामा समा मातुः पश्यन् याति परं पदम् ॥३२३॥ अन्वयार्थ-(परद्रव्यं तृणतुल्यं) दूसरेके धनको तृणके समान, (परं च स्वशरीरवत्) दूसरेके शरीरको अपने शरीरके समान, (पररामा मातुः समा) परस्त्रीको माताके समान (पश्यन्) जो देखता है (परं पदं याति) वह परमपद मोक्षको पाता है। भावार्थ-हरएक मानवको अहिंसाव्रत भले प्रकार पालना चाहिए । जिसके पास जो वस्तुएँ होती हैं वे उसे प्राणोंसे अधिक प्यारी होती है। इसलिए उसकी वस्तुओंको चुराना बड़ा दोष है, बड़ी हिंसा है। अतएव परके धनको तृणके समान देखकर उसकी लालसा न करनी चाहिए । जैसे अपने शरीरको कष्ट पहुँचता है तो वेदना होती है वैसे यदि दूसरेके शरीरमें मैं कष्ट पहँचाऊँगा तो वेदना होगी ऐसा समझकर किसीको सताना न चाहिए । ब्रह्मचर्यव्रतकी रक्षार्थ परस्त्रीको माताके समान देखना चाहिए । स्वस्त्रीमें गृहस्थको संतोष रखना चाहिए। ये ही बातें जीवको मोक्षमें पहुँचा देती है। सम्यक्त्वं समतायोगो नैःसङ्गं क्षमता तथा । कषायविषयासङ्गः कर्मणां निर्जरा परा ॥३२४॥ अन्वयार्थ-(सम्यक्त्वं) सम्यग्दर्शन-तत्त्वार्थका श्रद्धान, (समता) वीतरागता, (योगः) ध्यान, (नैसंगं) परिग्रहका त्याग, (क्षमता) क्षमा, (तथा कषायविषयासंगः) तथा विषय कषायका त्याग, (कर्मणां परा निर्जरा) ये सब कर्मोंकी बड़ी निर्जरा करनेवाले हैं। __ भावार्थ-कर्मोंके बन्धनसे छूटनेके लिए सम्यग्दर्शनसहित वीतरागताका, ध्यानका, अपरिग्रहका, क्षमाका, विषय-कषायोंके त्यागका अभ्यास मोक्षका साधन है। इनको निरन्तर पालना चाहिए । अयं तु कुलभद्रेण भवविच्छित्तिकारणम् । दृब्धो बालस्वभावेन ग्रन्थः सारसमुच्चयः॥३२५॥ अन्वयार्थ-(बालस्वभावेन कुलभद्रेण) बाल स्वभावधारी कुलभद्रने (अयं तु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004017
Book TitleSara Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulbhadracharya, Shitalprasad
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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