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________________ ७८ ] बृहद्रव्यसंग्रहः [क्षेपक गाथा १-२ सिद्ध एव । परमनिश्चयेन तु भोगाकांक्षादिरूपसमस्तविकल्पजालरहितपरमसमाधिकाले सिद्धसदृशः स्वशुद्धात्मैवोपादेयः शेषद्रव्याणि हेयानीति तात्पर्यम् । शुद्धबुधैकस्वभाव इति कोऽर्थः १ मिथ्यात्वरागादिसमस्तविभावरहितत्वेन शुद्ध, इत्युच्यते केवलज्ञानाद्यनन्तगुणसहितत्वाद्रुद्धः । इति शुद्धबुधैकलक्षणम् सर्वत्र ज्ञातव्यम् । चूलिकाशब्दार्थः कथ्यते-चूलिका विशेषव्याख्यानम् , अथवा उक्तानुक्तव्याख्यानम् , उक्तानुक्तसंकीर्णव्याख्यानम् चेति । ॥ इति षड्द्रव्यचूलिका समाप्ता ॥ आदि समस्त विकल्पों से रहित परमध्यान के समय सिद्ध-समान निज शुद्ध आत्मा ही उपादेय है । अन्य सब द्रव्य हेय हैं, यह तात्पर्य है । "शुद्धबुद्धकस्वभाव" इस पद का क्या अर्थ है ? इसको कहते हैं-मिथ्यात्व, राग आदि समस्त विभावों से रहित होने के कारण आत्मा शुद्ध कहा जाता है । तथा केवलज्ञान आदि अनन्त गुणों से सहित होने के कारण आत्मा बुद्ध है । इस तरह “शुद्धबुद्ध कस्वभाव" पद का अर्थ सर्वत्र समझना चाहिए। अब 'चूलिका' शब्द का अर्थ कहते हैं किसी पदार्थ के विशेष व्याख्यान को, कहे हुए विषय में जो अनुक्त विषय हैं उनके व्याख्यान को अथवा उक्त, अनुक्त विषय से मिले हुए कथन को 'चूलिका' कहते हैं। इस प्रकार छह द्रव्यों की चूलिका समाप्त हुई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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