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________________ ७० ] वृहद्र्व्यसंग्रहः [ गाथा २६ मन्दगत्या गच्छतः पुद्गलपरमाणोरेकाकाशप्रदेशपर्यन्तमेव कालद्रव्यं गतेः सहकारिकारणं भवति ततो ज्ञायते तदप्येकप्रदेशमेव ।। कश्चिदाह-पुद्गलपरमाणोर्गतिसहकारिकारणं धर्मद्रव्यं तिष्टति, कालस्य किमायातम् ? नैवं वक्तव्यम्-धर्मद्रव्ये गतिसहकारिकारणे विद्यमानेऽपि मत्स्याना जलवन्मनुष्याणां शकटारोहणादिवत्सहकारिकारणानि बहून्यपि भवन्ति इति । अथ मतं कालद्रव्यं पुद्गलानां गतिसहाकारिकारणं कुत्र भणितमास्ते ? तदुच्यते- "पुग्मलकरणा जीवा खंधा खलु कालकरणादु" इत्युक्तं श्रीकुन्दकुन्दाचार्यदेवैः पश्चास्तिकायप्राभृते । अस्यार्थः कथ्यते-धर्मद्रव्ये विद्यमानेऽपि जीवानाम् कर्मनोकर्मपुद्गला गतेः सहकारिकारणं भवन्ति, अणुस्कन्धभेदभिन्नपुद्गलानां तु कालद्रव्यमित्यर्थः ॥ २५ ॥ अथैकप्रदेशस्यापि पुद्गलपरमाणोरुपचारेण कायत्वमुपदिशति : एयपदेसो वि अणू णाणाखंधप्पदेमदो होदि । वहुदेसो उवयारा तेण य कात्रो भणंति सब्बण्हु ॥ २६ ॥ प्रदेश तक ही कालद्रव्य गति का सहकारी कारण होता है; इस कारण जाना जाता है कि वह कालद्रव्य भी एक ही प्रदेश का धारक है। यहाँ कोई कहता है कि-पुद्गल मरमाणु की गति में सहकारी कारण तो धर्मद्रव्य विद्यमान है ही; इसमें काल द्रव्य का क्या प्रयोजन है ? उत्तर-ऐसा नहीं है । क्योंकि गति के सहकारी कारण धर्मद्रव्य के विद्यमान रहते भी मत्स्यों की गति में जल के समान तथा मनुष्यों की गति में गाड़ी पर बैठना आदि के समान पुद्गल की गति में और भी बहुत से सहकारी कारण होते हैं । कदाचित् कोई यह कहे कि "कालद्रव्य पुद्गलों की गति में सहकारी कारण है" यह कहाँ कहा है ? सो कहते हैं-श्री कुन्दकुन्द आचार्य ने “पंचास्तिकाय प्राभृत” की गाथा ६८ में" पुग्गलकरणा जीवा खंधा खलु कालकरणादु" ऐसा कहा है । इसका अर्थ यह है कि धर्मद्रव्य के विद्यमान होने पर भी जीवों की गति में कर्म, नोकर्म पुद्गल सहकारी कारण होते हैं और अणु तथा स्कन्ध इन भेदों वाले पुद्गलों के गमन में कालद्रव्य सहकारी कारण होता है ॥ २५॥ पुद्गल परमाणु यद्यपि एक प्रदेशी है तो भी उपचार से उसको काय कहते हैं, अब ऐसा उपदेश देते हैं : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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