SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ ] वृहद्र्व्यसंग्रहः [ गाथा २३-२४ अतः परं सूत्रपञ्चकपर्यन्तं पञ्चास्तिकायव्याख्यानं करोति । तत्रादौ गाथापूर्वार्द्धन षड्द्र्व्यव्याख्यानोपसंहार उत्तरार्धेन तु पंचास्तिकायव्याख्यानप्रारम्भः कथ्यते : एवं छब्भेयमिदं जीवाजीवप्पभेददो दब्बं । उत्त कालविजुत्तणादव्वा पंच अत्थिकाया दु ।। २३ ।। एवं षड्भेदं इदं जीवाजीवप्रभेदतः द्रव्यम् । उक्त कालवियुक्तम् ज्ञातव्याः पञ्च अस्तिकायाः तु ॥ २३ ॥ व्याख्या -- "एवं छब्भेयमिदं जीवाजीवप्पभेददो दब्बं उत्त" एवं पूर्वोक्तप्रकारेण षड्भेदमिदं जीवाजीवप्रभेदतः सकाशाद्रव्यमुक्त कथितं प्रतिपादितम् । " कालविजुत्तणादव्वा पंच अस्थिकाया दु" तदेव षड्विधं द्रव्यं कालेन वियुक्त' रहितं ज्ञातव्याः पञ्चास्तिकायास्तु पुनरिति ॥ २३ ॥ पञ्चेति संख्या ज्ञाता तावदिदानीमस्तित्वं कायत्वं च निरूपयति : संति जदो तेणेदे अस्थित्ति भणंति जिणवरा जमा । काया इव बहुदेसा तह्मा काया य अस्थिकाया य ॥२४॥ सन्ति यतः तेन एते अस्ति इति भणन्ति जिनवराः यस्मात् । काया इव बहुदेशाः तस्मात् कायाः च अस्तिकायाः च ॥ २४ ॥ अब इसके पश्चात् पांच गाथाओं में पंचास्तिकाय का व्याख्यान करते हैं और उनमें भी प्रथम गाथा के पूर्वार्ध में छहों द्रव्यों के व्याख्यान का उपसंहार और उत्तरार्ध से पंचास्तिकाय के व्याख्याच का आरम्भ करते हैं : गाथार्थ :-इस प्रकार जीव और अजीव के प्रभेद से यह द्रव्य छह प्रकार के हैं ! कालद्रव्य के बिना शेष पांच द्रव्य अस्तिकाय जानने चाहियें ॥ २३ ॥ वृत्त्यर्थ :-"एवं छब्भेयमिदं जीवाजीवप्पभेददो दव्वं उत्तं" पूर्वोक्त प्रकार से जीव तथा अजीव के भेद से ये द्रव्य छह प्रकार के कहे गये हैं। "कालविजुत्तं णादव्या पंच अस्थिकाया दु" वे ही छह प्रकार के द्रव्य कालरहित अर्थात् काल के बिना (शेष पांच द्रव्यों को) पांच अस्तिकाय समझना चाहिये ।। २३ ॥ अस्तिकाय की पांच संख्या तो जान ली हैं, अब उनके अस्तित्व और कायत्व का निरूपण करते हैं : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy