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गाथा ३ ] प्रथमाधिकारः
[११ व्याख्या- "निकाले चदुपाणा" कालत्रये चत्वारः प्राणा भवन्ति । ते के "इंदियबलमाउप्राणपाणो य" अतीन्द्रियशुद्धचैतन्यप्राणात्प्रतिशत्रुपक्षभूतः क्षायोपशमिक इन्द्रियप्राणः, अनन्तवीर्यलक्षणबलप्राणादनन्तैकभागप्रमिता मनोपचनकायबलप्राणाः, अनाद्यनन्तशुद्धचैतन्यप्राणविपरीततद्विलक्षणाः सादिः सान्तवायुः प्राय:, उच्छ्वासपरावर्तोत्पन्नखेदरहितविशुद्धचित्प्राणाद्विपरीतसदृश आनपानप्राणः । “ववहारा सो जीवो" इत्थंभूतैश्चतुर्भिद्र व्यभावप्राणैर्यथासंभवं जीवति जीविष्यति जीवितपूर्वो वा यो व्यवहारनयात्स जीवः, द्रव्येन्द्रियादिद्रव्यप्राणा अनुपचरितास तव्यवहारेण, भावेन्द्रियादिः क्षायोपशमिकभावप्राणाः पुनरशुद्धनिश्चयेन, सत्ताचैतन्यचोधादिः शुद्धभावप्राणा: निश्चयेनेति । "णिच्छयणयदो दु चेदणा जस्स" शुद्धनिश्चयनयतः सकाशादुपादेयभूता शुद्धचेतना यस्य स जीवः; एवं “वच्छरक्खभवसारिच्छ, सग्गणिरयपियराय । चुल्लयहंडिय पुण मडउ णव दिट्ठता जाय ॥१॥" इति दोहककथितनवदृष्टान्तैश्चार्वाकमतानुसारिशिष्यसंबोधनार्थ जीवसिद्धिव्याख्यानेन गाथा गता । अध्यात्मभाषया नयलक्षणं कथ्यते । सर्वेजीवाः शुद्धबुधैकस्वभावा; इति शुद्धनिश्चयनयलक्षणम् । रागादय
वृत्त्यर्थः-"तिकाले चदुपाणा" तीन काल में जीव के चार प्राण होते हैं। वे कौन से ? "इंदियवलमाउआणपाणो य” इन्द्रियों के अगोचर जो शुद्ध चैतन्य प्राण है उसके प्रतिपक्षभूत क्षायोपशमिक (क्षयोपशम से होने वाले) इन्द्रिय प्राण है, अनन्त-वीर्यरूप जो बलप्राण है उसके अनन्तवें भाग के प्रमाण मनोवल, वचनबल और कायबल प्राण हैं; अनादि, अनन्त तथा शुद्ध जो चैतन्य प्राण है उससे विपरीत एवं विलक्षण सादि (आदि सहित) और सान्त (अन्त सहित) आयु प्राण है; श्वासोच्छ्वास के आने जाने से उत्पन्न खेद से रहित जो शुद्ध चित्-प्राण है उससे विपरीत श्वासोच्छवास प्राण है । "वबहारा सोजीवो" व्यवहारनय से, इस प्रकार के चार द्रव्य व भाव प्राणों से जो जीता है; जीवेगा या पहले जी चुका है, वह जीव है। अनुपचरित असद्भत व्यवहारनय की अपेक्षा द्रव्येन्द्रिय आदि द्रव्य प्राण हैं; और अशुद्ध निश्चयनय से भावेन्द्रिय आदि क्षायोपशमिक भावप्राण हैं; और निश्चयनय से सत्ता, चैतन्य, बोध आदि शुद्धभाव जीब के प्राण हैं । "णिच्छयणयदो दु चेदणा जस्स" शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा उपादेयभूत यानी ग्रहण करने योग्य शुद्ध चेतना जिसके हो वह जीव है। “वच्छ रक्ख भवसारिच्छ सग्गणिरय 'पियराय । चुल्लय हंडय पुण मडउ णव दिता जाय ।” १. वत्स-जन्म लेते ही बछड़ा पूर्वजन्म के संस्कार से, बिना सिखाये अपने आप ही माता के स्तन पीने लगता है । २. अक्षरअक्षरों का उच्चारण जीव जानकारी के साथ आवश्यकतानुसार करता है; जड़ पदार्थों में शब्द उच्चारण में यह विशेषता नहीं होती । ३. भव-आत्मा यदि एक स्थायी पदार्थ न हो तो जन्म-ग्रहण किसका होगा ? ४. सादृश्य-आहार, परिग्रह, भय, मैथुन, हर्ष, विषाद
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