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________________ गाथा ४० ] तृतीयोऽधिकारः [ १६१ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रत्रयं मोक्षस्य कारणं, हे शिष्य ! जानीहि व्यवहारनयात् । "णिच्छयदो तित्तियमइयो णिो अप्पा" निश्चयतस्तत्रितयमयो निजात्मेति । तथाहि वीतरागसर्वज्ञप्रणीतषड्द्रव्यपञ्चास्तिकायसप्ततवनवपदार्थसम्यक्श्रद्धानज्ञानव्रताद्यनुष्ठानविकल्परूपो व्यवहारमोक्षमार्गः। निजनिरञ्जनशुद्धात्मतत्त्वसम्यक्त्रद्धानज्ञानानुचरणैकागचपरिणतिरूपो निश्चयमोक्षमार्गः। अथवा स्वशुद्धात्मभावनासाधकवहिर्द्रव्याश्रितो व्यवहारमोक्षमार्गः । केवलस्वसंवित्तिसमुत्पन्नरागादिविकल्पोपाधिरहितसुखानुभूतिरूपोनिश्चय मोक्षमार्गः । अथवा धातुपाषाणेऽग्निवत्साधको व्यवहारमोक्षमार्गः, सुवर्णस्थानीयनिर्विकारस्वोपलब्धिसाध्यरूपो निश्चयमोक्षमार्गः। एवं संक्षेपेण व्यवहारनिश्चयमोक्षमार्गलक्षणं ज्ञातव्यमिति । ३६ । अथाभेदेन सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि स्वशुद्धोत्मैव तेन कारणेन निश्चयेनात्मैव निश्चयमोक्षमार्ग इत्याख्याति । अथवा पूर्वोक्तमेव निश्चयमोक्षमार्ग प्रकारान्तरेण दृढयति : रयणत्तयं ण वट्टइ अप्पाणं मुइत्तु अएणदवियनि । तमा तत्तियमइउ होदि हु मुक्खस्स कारणं श्रादा ॥ ४० ॥ रत्नत्रयं न वर्त्तते आत्मानं मुक्त्वा अन्यद्रव्ये । तस्मात् तन्त्रिकमयः भवति खलु मोक्षस्य कारणं आत्मा ॥४०॥ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र (इन तीनों के समुदाय) को व्यवहार नय से मोक्ष का कारण जानो। 'णिच्छयदो तत्तियमइओ णिो अप्पा' सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यकचारित्र इन तीनमयी निज आत्मा ही निश्चय नय से मोक्ष का कारण है। तथाश्री वीतराग सर्वज्ञ देव कथित छह द्रव्य, पांच अस्तिकाय, सात तत्त्व और नव पदार्थों का सम्यश्रद्धान-ज्ञान और व्रत आदि रूप आचरण, इन विकल्पसयी व्यवहार मोक्ष-मार्ग है । निज निरंजन शुद्ध-बुद्ध आत्मतत्त्व के सभ्यश्रद्धान, ज्ञान तथा आचरण में एकाप्रपरिणति रूप निश्चय मोक्ष-मार्ग है । अथवा स्वशुद्धात्म-भावना का साधक व वाह्य पदार्थ के आश्रित व्यवहार मोक्ष-मार्ग है । मात्रस्वानुभव से उत्पन्न व रागादि विकल्पों से रहित सुख अनुभवन रूप निश्चय मोक्ष-मार्ग है । अथवा धातु-पाषाण से सुवर्ण प्राप्ति में अग्नि के समान जो साधक है, वह तो व्यवहार मोक्ष-मार्ग है तथा सुवर्ण समान निर्विकार निज-आत्मा के स्वरूप की प्राप्ति रूप साध्य, वह निश्चय मोक्ष-मार्ग है । इस प्रकार संक्षेप से व्यवहार तथा निश्चय मोक्ष-मार्ग का लक्षण जानना चाहिए ।। ३६ ।। __अब अभेद से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप, निज शुद्ध-आत्मा ही है, इस कारण निश्चय से आत्मा ही निश्चय मोक्ष-मार्ग है, इस प्रकार कथन करते हैं। अथवा पूर्वोक्त निश्चय मोक्ष-मार्ग को ही अन्य प्रकार से दृढ़ करते हैं : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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