SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६०] वृहद्रव्यसंग्रहः [गाथा ३६ तृतीयः अधिकार अतः ऊर्ध्व विंशतिगाथापर्यन्तं मोक्षमार्ग कथयति । तत्रादौ "सम्मदंसण" इत्याद्यष्टगाथाभिनिश्चयमोक्षमार्गव्यवहारमोक्षमार्गप्रतिपादकमुरूपत्वेन प्रथमः अन्तराधिकारस्ततः परम् "दुविहं पि मुक्खहेर्ड" इति प्रभृतिद्वादशसूत्रैर्ध्यानध्यातध्येयध्यानफलकथनमुख्यत्वेन द्वितीयोऽन्तराधिकारः । इति तृतीयाधिकारे समुदायेन पातनिका। __अथ प्रथमतः सूत्रपूर्वार्धेन व्यवहारमोक्षमार्गमुत्तरार्धेन च निश्चयमोक्षमार्ग निरूपयति : सम्मदसणणाणं चरणं मोक्खस्स कारणं जोणे । ववहारा णिच्छयदो तत्तियमइओ णिो अप्पा ॥ ३९ ॥ सम्यग्दर्शनं ज्ञानं चरणं मोक्षस्य कारणं जानीहि । व्यवहारात् निश्चयतः तत्रिकमयः निजः श्रात्मा ॥३६॥ व्याख्या- "सम्मदसणणाणं चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे ववहारा" तीमरा अधिकार अब आगे बीस गाथाओं तक मोक्ष-मार्ग का कथन करते हैं । उसके प्रारम्भ में 'सम्मदसणणाणं' इत्यादि आठ गाथाओं द्वारा प्रधानता से निश्चय मोक्ष-मार्ग और व्यवहार मोक्ष-मार्ग का प्रतिपादक प्रथम अन्तराधिकार है। उसके अनंतर 'दुविहं पि मुक्खहे उं' आदि बारह गाथाओं से ध्यान, ध्याता, ध्येय तथा ध्यान के फल को मुख्यता से कहने वाला द्वितीय अन्तराधिकार है । इस प्रकार इस तृतीय अधिकार की समुदाय से भूमिका है। अब प्रथम ही सूत्र के पूर्वार्ध से व्यवहार मोक्ष-मार्ग को और उत्तरार्ध से निश्चय मोक्ष-मार्ग को कहते हैं : गाथार्थ :-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र (इन तीनों के समुदाय) को व्यवहारनय से मोक्ष का कारण जानो। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रमयी निज आत्मा को निश्चयनय से मोक्ष का कारण जानो ॥ ३ ॥ वृत्त्यर्थ :-'सम्मदसणणाणां चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे ववहारा' हे शिष्य ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy